Thu, 14 November 2024 09:24:21am
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में चुनावी याचिकाओं में न्यायिक हस्तक्षेप के अधिकार पर अपना रुख स्पष्ट किया। यह फैसला अशिष किशोर गडकरी की याचिका को खारिज करते हुए आया, जिन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के लिए अपनी नामांकन अस्वीकृति को चुनौती दी थी। गडकरी की नामांकन फॉर्म पर प्रस्तावक के हस्ताक्षर न होने के कारण इसे अस्वीकार कर दिया गया था।
हाईकोर्ट का रुख और चुनाव प्रक्रिया का महत्व
जस्टिस आरिफ एस डॉक्टर और सोमशेखर सुंदरशन की बेंच ने कहा कि यदि न्यायिक हस्तक्षेप चुनावी प्रक्रिया को गति प्रदान करता है, तो ही इसे सही माना जा सकता है। कोर्ट ने पाया कि उम्मीदवारों के अधिकार पहले ही स्थापित हो चुके हैं, और इस स्तर पर हस्तक्षेप से चुनाव प्रक्रिया बाधित होगी।
सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ गोवा बनाम फौजिया इम्तियाज शेख के मामले में स्थापित सिद्धांत का अनुसरण किया, जिसमें कहा गया था कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान कोर्ट को "हैंड्स-ऑफ" रुख अपनाना चाहिए, जब तक कि हस्तक्षेप चुनाव प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए न हो।
नामांकन प्रक्रिया में त्रुटि
अदालत ने स्पष्ट किया कि गडकरी ने नामांकन फॉर्म में प्रस्तावक के हस्ताक्षर नहीं जोड़े थे, जो कि एक आवश्यक नियम है। गडकरी का यह तर्क कि प्रस्तावक का नाम ही पर्याप्त था, को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि उम्मीदवारों को समय सीमा के बारे में पहले से सूचित किया गया था।
कोर्ट के निर्णय का निष्कर्ष
अदालत ने कहा कि गडकरी के मामले में प्रशासनिक निर्णय का उल्लंघन नहीं हुआ था, और इसलिए न्यायिक हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।
अधिवक्ता का पक्ष और प्रतिक्रिया
याचिकाकर्ता गडकरी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरशद शेख और चुनाव आयोग की ओर से अधिवक्ता अक्षय शिंदे ने कोर्ट में पक्ष रखा।