Mon, 30 December 2024 12:05:55am
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, किसी भी धार्मिक स्थल की स्थापना को दूसरी समुदाय की आपत्ति के आधार पर नहीं रोका जा सकता। जस्टिस मोहम्मद निआस सीपी ने कहा कि भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के आधार पर धार्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखना आवश्यक है।
केस की पृष्ठभूमि: के टी मुईब बनाम राज्य सरकार
इस मामले में याचिकाकर्ता के टी मुईब ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिनकी प्रॉपर्टी को स्थानीय पंचायत ने धार्मिक स्थल के रूप में इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी थी। मुईब 2004 से अपनी संपत्ति को प्रार्थना हॉल के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे, लेकिन स्थानीय निवासियों ने इस पर आपत्ति जताई और इसे मस्जिद में परिवर्तित किए जाने का आरोप लगाया। इसके बाद पंचायत ने निर्माण कार्य को रोकने और धार्मिक गतिविधियों पर पाबंदी लगाने का आदेश जारी किया था।
न्यायालय का आदेश: आपत्ति के आधार पर धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं
न्यायालय ने फैसला देते हुए कहा कि केवल एक समुदाय की आपत्ति के आधार पर धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में सभी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धार्मिक स्थल स्थापित करने पर "सार्वजनिक व्यवस्था" और "कानून व्यवस्था" में अंतर होना चाहिए।
सार्वजनिक व्यवस्था और कानून व्यवस्था में अंतर
अदालत ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि सार्वजनिक व्यवस्था का तात्पर्य सामूहिक सामंजस्य से है, जबकि कानून व्यवस्था व्यक्तिगत विवादों से जुड़ी होती है। कोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि सार्वजनिक व्यवस्था की आड़ में व्यक्तिगत विवादों के आधार पर धार्मिक अधिकारों को प्रतिबंधित न किया जाए।
फैसले की खास बातें और दिशा-निर्देश
अदालत ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए जिला कलेक्टर को मामले पर दोबारा विचार करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि दूसरे समुदाय के कुछ व्यक्तियों की आपत्ति, चाहे वे कितने ही हों, धार्मिक अधिकारों को छीनने का आधार नहीं हो सकती। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अन्य मस्जिद की निकटता के आधार पर धार्मिक स्थल स्थापित करने पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
अधिवक्ताओं की टीम और अदालती कार्रवाई
इस मामले में याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील एस श्रीकुमार और उनके सहयोगियों ने किया, जबकि राज्य का पक्ष सरकार के प्लीडर देवीश्री आर ने रखा। इसके अलावा पंचायत का प्रतिनिधित्व विनोद सिंह चेरीयन ने किया। इस मामले में न्यायालय ने सभी पक्षों को सुनने के बाद संतुलित फैसला दिया।
यह फैसला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों की पुष्टि करता है। अदालत ने सरकार और प्रशासन को निर्देश दिया कि वे धर्म का पालन करने के मौलिक अधिकार को संरक्षित रखें और किसी भी समुदाय की असंतोषजनक आपत्तियों के आधार पर इसे प्रतिबंधित न करें।