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क्या वकील की राय पर आपराधिक मुकदमा चलाना सही? छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का अहम फैसला



अजय त्यागी 2024-11-19 08:20:59 छत्तीसगढ

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट - Photo : Internet
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट - Photo : Internet
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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा है कि किसी वकील की राय से यदि किसी व्यक्ति या संस्था को आर्थिक नुकसान हुआ है, तो उस वकील के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाना उचित नहीं है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया कि इस मामले में धोखाधड़ी का आरोप तभी टिक सकता है, जब वकील ने जानबूझकर आर्थिक लाभ के इरादे से ऐसा किया हो।

केस का सारांश
यह मामला छत्तीसगढ़ के बेमेतरा स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) शाखा के एक मामले से जुड़ा है, जिसमें वकील रामकिंकर सिंह का नाम आया। सिंह ने एक गैर-बंधन प्रमाणपत्र (Non-Encumbrance Certificate) जारी किया था, जिसके आधार पर एक किसान क्रेडिट कार्ड के तहत 3 लाख रुपये का लोन मंजूर हुआ। बाद में जांच में पता चला कि संबंधित जमीन के दस्तावेज़ फर्जी थे और लोन लेने वाला व्यक्ति बैंक का बकाया नहीं चुका पाया। अगस्त 2018 में बैंक मैनेजर ने एफआईआर दर्ज करवाई और बाद में रामकिंकर सिंह को भी इस मामले में शामिल कर लिया गया।

वकील का बचाव और सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ
रामकिंकर सिंह के वकील ने तर्क दिया कि किसी वकील पर आरोप तभी साबित हो सकता है, जब वह धोखाधड़ी योजना में सक्रिय रूप से शामिल हो। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया (CBI, हैदराबाद बनाम के. नारायण राव, 2019) जिसमें कहा गया है कि किसी वकील की केवल राय पर अपराध का मामला नहीं बनाया जा सकता।

राज्य सरकार का पक्ष
राज्य सरकार के उप महाधिवक्ता शशांक ठाकुर ने कहा कि प्रारंभिक जांच में यह पाया गया कि रामकिंकर सिंह ने फर्जी दस्तावेजों को प्रमाणित किया था, जिससे बैंक को नुकसान हुआ। राज्य सरकार और बैंक के वकील का कहना था कि इस मामले में पर्याप्त प्रमाण हैं जो एक प्रारंभिक अपराध का संकेत देते हैं और इस आधार पर मुकदमा चलाने की जरूरत है।

अदालत का निर्णय
खंडपीठ ने मामले के रिकॉर्ड की गहन जांच करने के बाद पाया कि सिंह के खिलाफ सक्रिय रूप से धोखाधड़ी में शामिल होने के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं थे। कोर्ट ने यह भी माना कि यदि सिंह ने लापरवाही बरती होती, तो बैंक उन्हें अपने पैनल से हटा देता। इसके अलावा, सिंह का नाम एफआईआर में नहीं था, बल्कि उनके खिलाफ पूरक चार्जशीट में मामला दर्ज हुआ था। हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें सिंह के खिलाफ आरोप तय किए गए थे।

निष्कर्ष
इस फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी वकील की राय से नुकसान होने पर केवल राय के आधार पर आपराधिक मामला नहीं चल सकता। अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का पिछला निर्णय भी लागू होता है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि कानूनी राय को ही आधार बनाकर किसी वकील के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता।


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