Mon, 30 December 2024 12:10:51am
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे एक मृतक सरकारी कर्मचारी की पत्नी को उसके रिटायरमेंट ड्यूज के 14 साल बाद देरी से मिली राशि पर 8% ब्याज दें। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोत की एकल पीठ ने 19 नवंबर 2024 को सुनाया। कोर्ट ने कहा कि यह देरी पूरी तरह से राज्य अधिकारियों की लापरवाही के कारण हुई और यह नहीं हो सकता कि मृतक के परिवार को इस तरह की कठिनाई का सामना करना पड़े।
प्रारंभिक तथ्य और देरी की शुरुआत
यह मामला सृजनवादी दृष्टिकोण से विशेष था, क्योंकि मृतक कर्मचारी के परिवार को उसकी मृत्यु के बाद भी 14 साल तक रिटायरमेंट ड्यूज की राशि प्राप्त नहीं हुई थी। कर्मचारी का निधन 2005 में हुआ था, और उस समय ही उसकी पत्नी ने पेंशन और अन्य रिटायरमेंट ड्यूज के लिए आवेदन किया था। हालांकि, इस आवेदन के बाद, जब तक यह राशि 2019 में रिलीज नहीं हुई, पत्नी को लगातार अधिकारियों से समय बर्बाद और निराशाजनक जवाब मिलते रहे।
राज्य की लापरवाही पर गंभीर टिप्पणी
हाई कोर्ट ने राज्य अधिकारियों की निंदा करते हुए कहा कि यदि किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके परिवार को किसी तरह की परेशानी होती है, तो राज्य का दायित्व है कि वह संवेदनशीलता और तत्परता से कार्रवाई करे। न्यायालय ने यह भी कहा कि अधिकारियों ने पूरी तरह से एक उपेक्षात्मक रवैया अपनाया था, जिससे मृतक के परिवार की तकलीफें और बढ़ी। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस देरी के कारण परिवार को गंभीर मानसिक और आर्थिक परेशानियाँ उठानी पड़ीं।
ब्याज का आदेश और राहत का रास्ता
इस लापरवाही के परिणामस्वरूप कोर्ट ने आदेश दिया कि मृतक कर्मचारी की पत्नी को उसकी रिटायरमेंट राशि पर 8% वार्षिक ब्याज दिया जाए। कोर्ट ने यह ब्याज 18 अगस्त 2005 से लेकर 23 दिसंबर 2019 तक की अवधि के लिए देने का आदेश दिया, और अधिकारियों को तीन महीने के भीतर यह राशि और ब्याज रिलीज करने के लिए कहा। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि इस अवधि के भीतर राशि का भुगतान नहीं किया गया, तो संबंधित अधिकारियों को देरी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
न्याय की विजय और भविष्य में सुधार की उम्मीदें
यह निर्णय सरकार के अधिकारियों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपनी जिम्मेदारियों का पालन करें और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करें। यह निर्णय ना केवल मृतक कर्मचारी के परिवार के लिए एक बड़ी राहत है, बल्कि यह इस बात का उदाहरण भी है कि न्यायपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर रहती है।