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पासपोर्ट आवेदन में परिवार के आपराधिक रिकॉर्ड नहीं बन सकते बाधा: हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला



अजय त्यागी 2024-11-22 10:24:52 मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (इंदौर बेंच) - Photo : Internet
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (इंदौर बेंच) - Photo : Internet
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया कि पासपोर्ट आवेदन में आवेदक के परिवार के आपराधिक रिकॉर्ड का आधार परखना कानून के खिलाफ है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सुभोध अभ्यंकर ने सुनाया, जिसने मौलिक अधिकारों की रक्षा को लेकर एक नई मिसाल कायम की है।

मामले की पृष्ठभूमि
एक महिला ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, क्योंकि उसका पासपोर्ट आवेदन क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी ने खारिज कर दिया था। खारिजी का कारण बताया गया कि उसके पति और ससुर पर एनडीपीएस (नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस) अधिनियम और अन्य मामलों के तहत मुकदमे दर्ज हैं। ससुर अब भी कई मामलों में फरार हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था।

पहले की कार्यवाही और अदालत का आदेश
याचिकाकर्ता ने पहले भी एक रिट याचिका (डब्ल्यू.पी. नं. 10154/2021) के माध्यम से अदालत से आदेश प्राप्त किया था कि उसके आवेदन को पुनः बिना किसी पूर्वाग्रह के समीक्षा की जाए। इसके बावजूद, अधिकारियों ने 17 नवंबर 2022 को आवेदन खारिज करते हुए पुलिस सत्यापन को आधार बनाया।

वकीलों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अधिकारियों ने अदालत के पहले आदेश की अवहेलना की और उसी आधार पर आवेदन खारिज कर दिया। वहीं, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने परिवार के आपराधिक रिकॉर्ड को आधार बताते हुए इसे जायज ठहराया, हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि महिला पर कोई मामला दर्ज नहीं है।

हाई कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति सुभोध अभ्यंकर ने कहा कि पासपोर्ट जारी करने के लिए केवल आवेदक की चरित्र सत्यापन रिपोर्ट का ही मूल्यांकन किया जा सकता है। पति या ससुर के आपराधिक रिकॉर्ड को आवेदक के मौलिक अधिकारों के खिलाफ आधार नहीं बनाया जा सकता। अदालत ने अधिकारियों के फैसले को "गंभीर लापरवाही" करार देते हुए इसे खारिज कर दिया और चार हफ्तों के भीतर मामले की पुनः समीक्षा करने का निर्देश दिया।

फैसले का महत्व
इस निर्णय ने पासपोर्ट संबंधित मामलों में पारदर्शिता और मौलिक अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया है। यह फैसला खासकर महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।


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