Wed, 01 January 2025 09:37:51pm
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में धारा 27 साक्ष्य अधिनियम को लेकर एक अहम फैसला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि अभियुक्त द्वारा पुलिस हिरासत में दिए गए बयान का केवल वही भाग स्वीकार्य है, जो सीधे साक्ष्य की खोज से संबंधित हो। इस निर्णय ने न्याय प्रक्रिया में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए एक नई दिशा प्रदान की है।
मामला: हत्या और अपहरण का आरोप
यह फैसला एक ऐसे मामले में आया, जिसमें अभियुक्त पर हत्या और अपहरण का आरोप था। अभियोजन पक्ष ने अभियुक्त द्वारा किए गए कथित स्वीकारोक्ति को सबूत के रूप में पेश किया, जिसमें यह दावा किया गया था कि अभियुक्त ने पुलिस को मृत शरीर के स्थान के बारे में जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस स्वीकारोक्ति में ऐसे अंश भी शामिल थे, जो कानून के अनुसार अस्वीकार्य हैं।
न्यायालय की टिप्पणी: अस्वीकार्य बयान न शामिल करें
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह, और एजी मसीह की पीठ ने पाया कि जांच अधिकारी (PW-27) ने अभियुक्त के कथित स्वीकारोक्ति को साबित करने का प्रयास किया, जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 और 26 के तहत पूरी तरह से निषिद्ध है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसे बयान, जो पुलिस हिरासत में दिए गए हैं और प्रत्यक्ष साक्ष्य की खोज से संबंधित नहीं हैं, उन्हें अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के मुख्य भाग में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
धारा 27 की व्याख्या: क्या है स्वीकार्य?
धारा 27 के तहत, केवल वही जानकारी स्वीकार्य है जो स्पष्ट रूप से साक्ष्य की खोज से संबंधित हो। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह जानकारी अभियुक्त द्वारा पुलिस को दिए गए बयान में सटीक और साक्ष्य की खोज से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी होनी चाहिए। किसी भी अस्वीकार्य भाग को शामिल करने से न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
अदालती फैसले का असर: अभियुक्त को बरी किया गया
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था, और घटनाओं की श्रृंखला पूर्ण रूप से सिद्ध नहीं की जा सकी। इस आधार पर, अभियुक्त को अपहरण और हत्या के आरोपों से मुक्त कर दिया गया।
कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता की जरूरत
इस फैसले के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि निचली अदालतें अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की जांच में और अधिक सतर्क रहेंगी, विशेष रूप से जब यह पुलिस हिरासत में दिए गए बयानों पर आधारित हो।
न्याय प्रक्रिया में निष्पक्षता का नया मापदंड
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय साक्ष्य अधिनियम की व्याख्या को और स्पष्ट करता है, जिससे अभियोजन पक्ष को यह सुनिश्चित करना होगा कि केवल वैध और प्रमाणिक साक्ष्य ही प्रस्तुत किए जाएं। यह न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा।