Mon, 06 January 2025 04:54:34pm
मद्रास हाई कोर्ट ने एक असामान्य मामले में दोबारा जांच (De Novo Investigation) का आदेश दिया, जिसमें पुलिस की अंतिम रिपोर्ट पर जांच अधिकारी (IO) का हस्ताक्षर जाली निकला। इस घटना ने न केवल न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं की खामियों को भी उजागर किया है।
मामला: कैसे शुरू हुआ विवाद?
याचिकाकर्ता पी. वेंकटेशन ने कुछ व्यक्तियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 294(b), 323 और 506(ii) के तहत शिकायत दर्ज करवाई। उन्होंने दावा किया कि पुलिस मामले की सही तरीके से जांच नहीं कर रही थी। पुलिस ने अपनी अंतिम रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत की, लेकिन वेंकटेशन ने इसे चुनौती देते हुए सीबी-सीआईडी को जांच स्थानांतरित करने की मांग की।
जांच अधिकारी का बयान: चौंकाने वाला खुलासा
कोर्ट में सुनवाई के दौरान, जांच अधिकारी ने कहा कि उन्होंने न तो मामले की जांच की और न ही अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किए। यह जानकारी कोर्ट के लिए हैरान करने वाली थी और न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश ने इसे गंभीर मुद्दा करार दिया।
हाई कोर्ट का रुख: नए सिरे से जांच का आदेश
जस्टिस आनंद वेंकटेश ने सीबी-सीआईडी को मामले की दोबारा जांच करने का आदेश दिया। उन्होंने निर्देश दिया कि जांच केवल मुख्य मुद्दे तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह भी पता लगाया जाए कि किसने जांच अधिकारी के हस्ताक्षर जाली किए। कोर्ट ने यह भी कहा कि सच्चाई सामने आने पर स्वतंत्र कार्रवाई शुरू की जाए।
न्याय की दिशा में दुर्लभ कदम
कोर्ट ने दोबारा जांच को एक दुर्लभ उपाय बताया और कहा कि ऐसा कदम केवल असाधारण मामलों में उठाया जाता है। उन्होंने जोर दिया कि यह मामला पूरी तरह से फर्जी था, और न्याय के हित में पूरी प्रक्रिया को नए सिरे से जांच की आवश्यकता है।
व्यापक जांच के लिए सीबी-सीआईडी को आदेश
कोर्ट ने सीबी-सीआईडी को निर्देश दिया कि वह तीन महीने के अंदर विस्तृत जांच पूरी करे और यह सुनिश्चित करे कि दोषियों को न्याय के कटघरे में लाया जाए।
यह घटना प्रशासनिक और न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित करती है। यह मामला न केवल एक विशेष कानूनी मुद्दे पर प्रकाश डालता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे न्यायपालिका न्याय की रक्षा के लिए नए सिरे से कदम उठा सकती है।