Sun, 29 December 2024 06:38:26am
सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना और अनुचित भाषा का उपयोग करने वालों पर कार्रवाई को लेकर आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। इस फैसले ने सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं और उनके अधिकारों पर एक नई बहस छेड़ दी है।
कोर्ट का रुख: आलोचक बनाम बुली
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि "सरकार के आलोचक" और "सोशल मीडिया बुली" के बीच बड़ा अंतर है। कोर्ट ने कहा कि एक आलोचक समाज की गतिविधियों से अवगत रहता है और कानून के दायरे में रहकर अपनी बात रखता है। इसके विपरीत, "सोशल मीडिया बुली" झूठी जानकारी फैलाने या अपमानजनक भाषा का प्रयोग करके दूसरों को निशाना बनाता है। कोर्ट ने ऐसे मामलों को गंभीरता से लेते हुए इन पर कानून के तहत कार्रवाई का समर्थन किया।
पीआईएल की पृष्ठभूमि
यह निर्णय एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान आया, जिसे वरिष्ठ पत्रकार पी. विजय बाबू ने दायर किया था। याचिका में दावा किया गया था कि पुलिस सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स की अंधाधुंध गिरफ्तारी कर रही है, खासकर उन लोगों की, जो सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा से असहमत हैं। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को "राजनीतिक उद्देश्यों" से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया।
पुलिस कार्रवाई का बचाव
राज्य सरकार ने कोर्ट को जानकारी दी कि कई सोशल मीडिया पोस्ट में महिलाओं और यहां तक कि न्यायाधीशों के खिलाफ अपमानजनक भाषा का उपयोग किया गया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसी पोस्ट अस्वीकार्य हैं और पुलिस को कानूनी अधिकार है कि वह ऐसे मामलों में कार्रवाई करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के लिए किसी को भी कानून से छूट नहीं मिल सकती।
पीआईएल क्यों खारिज हुई?
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि जनहित याचिका का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि ऐसे वर्गों की जो कानूनी कार्रवाई में सक्षम हैं। कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया एक्टिविस्ट्स, जो शिक्षित और सूचित हैं, अपनी समस्याओं का हल स्वयं कानूनी तरीकों से निकाल सकते हैं। यह याचिका इस उद्देश्य के विपरीत थी और इसे खारिज कर दिया गया।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का यह निर्णय सोशल मीडिया के दुरुपयोग और कानून की सीमाओं के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नफरत फैलाने या व्यक्तिगत हमलों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।