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2004 का अपहरण और दुष्कर्म मामला: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सात दोषियों को किया बरी, पीड़िता के बयान पर उठाए सवाल



अजय त्यागी 2024-11-26 10:57:46 उत्तर प्रदेश

इलाहाबाद हाई कोर्ट - Photo : Internet
इलाहाबाद हाई कोर्ट - Photo : Internet
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2004 में एक 16 वर्षीय लड़की के अपहरण और दुष्कर्म मामले में सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने पीड़िता के बयान को नकारते हुए उसे विश्वसनीय नहीं माना। न्यायालय ने यह भी कहा कि पीड़िता ने आरोपियों को झूठे तरीके से फंसाने की कोशिश की थी, ताकि वह खुद एक अलग अपहरण मामले से बच सके।

मामला क्या था?
मूल मामले के अनुसार, पीड़िता के पिता ने 23 जुलाई 2004 को एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप था कि आरोपी कासिम ने 17 जून 2004 को उनकी 16 वर्षीय बेटी को बहलाकर अपहरण कर लिया था। इसके बाद पीड़िता ने बयान दिया कि उसे कासिम, प्रीतम और लाला (शकीर) ने कई स्थानों पर ले जाकर यौन उत्पीड़न किया। वह यह भी दावा करती है कि इन आरोपियों ने दिल्ली में एक अन्य बच्चे का अपहरण करने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में उसने इसमें भाग नहीं लिया।

अभियोजन की जांच और आरोप
जांच के दौरान आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया और कासिम, प्रीतम और लाला पर धारा 363, 366, 376 के तहत आरोप लगाए गए थे। बाद में शहजाद, गुलशन और जावेद के खिलाफ भी आरोपपत्र दायर किया गया। सभी आरोपियों को निचली अदालत ने दोषी ठहराया और विभिन्न सजा दी, जिनमें कासिम और प्रीतम को आजीवन कारावास की सजा मिली थी।

उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ
उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद पाया कि पीड़िता का बयान विश्वसनीय नहीं था और मेडिकल साक्ष्य भी उसके बयान का समर्थन नहीं करते थे। अदालत ने यह भी पाया कि पीड़िता का बयान एक अन्य अपहरण मामले से बचने के उद्देश्य से दिया गया था, और वह आरोपियों को झूठे तरीके से फंसाने की कोशिश कर रही थी। अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता ने जिस तरीके से घटनाओं का विवरण दिया, वह पूरी तरह से संदिग्ध था, खासकर जब उसे मेडिकल साक्ष्य से सहारा नहीं मिला।

पीड़िता का संदिग्ध व्यवहार
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पीड़िता ने यौन उत्पीड़न की घटना के बारे में पहले किसी से शिकायत नहीं की, लेकिन उसने सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके कई स्थानों की यात्रा की, जो उसके आरोपों की विश्वसनीयता को संदिग्ध बनाता है। अदालत ने कहा कि यह पूरी घटना पीड़िता के लिए एक बचाव बनाने का प्रयास प्रतीत होती है, ताकि वह अपने खिलाफ चल रहे दिल्ली के अपहरण मामले से बच सके।

अंतिम फैसला
इस सब के आधार पर उच्च न्यायालय ने सभी आरोपियों की सजा को खारिज कर दिया और उनकी अपीलों को स्वीकार किया। अदालत ने यह निर्णय दिया कि आरोपियों के खिलाफ जो आरोप लगाए गए थे, वे स्पष्ट रूप से झूठे थे और पीड़िता ने जानबूझकर उन्हें गलत तरीके से फंसाया था।


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