Sun, 29 December 2024 06:53:19am
1993 में नोएडा से अपहृत हुए नौ वर्षीय भीम सिंह का परिवार 30 वर्षों के बाद उनसे पुनर्मिलित हुआ है। यह घटना एक चमत्कारी पुनर्मिलन की कहानी प्रस्तुत करती है, जो परिवार और समाज के लिए एक प्रेरणा है।
1993 में अपहरण:
सितंबर 1993 में, भीम सिंह अपनी बहन के साथ स्कूल से घर लौटते समय एक ऑटो में सवार थे। रास्ते में उन्हें अगवा कर लिया गया और परिवार से ₹7.4 लाख की फिरौती की मांग की गई। इसके बाद, अपहरणकर्ताओं ने कोई संपर्क नहीं किया, और भीम का कोई पता नहीं चला।
परिवार की निरंतर खोज:
भीम के पिता, तुलाराम, ने अपने बेटे की खोज में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने गाज़ियाबाद में एक आटा चक्की खोली, ताकि परिवार के पास रहें और उम्मीद बनी रहे कि भीम एक दिन लौटेगा। हालांकि, समय के साथ उम्मीद कम होती गई, लेकिन परिवार ने कभी हार नहीं मानी।
राहुल का जीवन राजस्थान में:
अपहरण के बाद, भीम को राजस्थान में एक चरवाहे को बेच दिया गया। वह 30 वर्षों तक बकरियों और भेड़ों की देखभाल करता रहा, एक छोटे से शेड में बंधा रहता था, और उसे केवल रोटी और चाय मिलती थी। उसका जीवन पूरी तरह से बंदी जैसा था, और वह बाहरी दुनिया से कट गया था।
पुनर्मिलन की चमत्कारी घटना:
हाल ही में, एक दिल्ली के व्यवसायी ने जैसलमेर में एक पशु फार्म में बंधे हुए एक कमजोर व्यक्ति को देखा। उसने उसे मुक्त किया और भीम से उसके अतीत के बारे में जानकारी प्राप्त की। भीम ने नोएडा, अपने पिता तुलाराम, और 1993 के बारे में बताया। पुलिस ने पुराने रिकॉर्ड खंगाले और 8 सितंबर 1993 को साहिबाबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज अपहरण मामले को पाया।
पुलिस की जांच और परिवार से पुनर्मिलन:
पुलिस ने जांच शुरू की और परिवार को ट्रैक किया। गाज़ियाबाद के खोड़ा पुलिस स्टेशन में, भीम और उसके परिवार का पुनर्मिलन हुआ। परिवार ने उसे पहचान लिया, क्योंकि उसके बाएं हाथ पर 'राजू' नाम का टैटू था, जो उनका प्यारा उपनाम था, और दाएं पैर पर एक तिल था।
समाज के लिए संदेश:
यह घटना यह दर्शाती है कि उम्मीद और प्यार के साथ, परिवार अपने खोए हुए सदस्य को वापस पा सकते हैं। यह समाज को यह सिखाती है कि कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए, और परिवार के बंधन अडिग होते हैं।
Source : Times of India