Sun, 29 December 2024 11:52:10pm
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 164 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किए गए बयानों को बिना ठोस कारण के वापस नहीं लिया जा सकता। यह आदेश न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने दिया।
मामले का विवरण:
यह मामला अभियुक्तों की आपराधिक अपील से संबंधित था, जिन्होंने अपने खिलाफ गवाहों के वापस लिए गए बयानों के आधार पर अपनी सजा को चुनौती दी थी। गवाहों ने पहले अपने धारा 164 Cr.P.C. के बयानों में अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन किया था, लेकिन बाद में दावा किया कि वे जांच अधिकारी की धमकी और दबाव में दिए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
कोर्ट ने कहा कि धारा 164 Cr.P.C. के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हस्ताक्षरित बयानों से गवाहों का मुकरना स्वीकार्य नहीं, जब गवाहों ने बयान स्वीकार कर लिए थे। कोर्ट ने तर्क दिया कि अन्यथा, धारा 161 Cr.P.C. के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयानों और धारा 164 Cr.P.C. के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किए गए बयानों के बीच कोई अंतर नहीं होगा।
न्यायिक मजिस्ट्रेट की भूमिका:
कोर्ट ने टिप्पणी की, "मजिस्ट्री की न्यायिक संतुष्टि, इस आशय की कि दर्ज किया जा रहा बयान गवाह द्वारा बताए गए तथ्यों का सही संस्करण है, ऐसे प्रत्येक बयान का हिस्सा बनता है।" इससे स्पष्ट होता है कि मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज बयान अधिक विश्वसनीय होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह आदेश गवाहों के बयानों की गंभीरता और मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज बयानों की महत्ता को रेखांकित करता है।