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सुप्रीम कोर्ट ने अभियोजन पक्ष और कानूनी सहायता के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए



अजय त्यागी 2024-12-03 09:01:07 दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में अभियोजन पक्ष की भूमिका और अभियुक्तों को कानूनी सहायता प्रदान करने के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन निर्देशों का उद्देश्य आपराधिक मुकदमों में अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और सुनवाई की निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।

अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारियां
न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला और न्यायमूर्ति एजी मसिह की पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि वह निचली अदालत को अभियुक्त के बयान दर्ज करने में सहायता करे, विशेषकर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 313 के तहत। अभियोजन पक्ष को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी साक्ष्य और आरोप अभियुक्त के सामने प्रस्तुत किए जाएं, ताकि सुनवाई निष्पक्ष हो सके। 

कानूनी सहायता का अधिकार
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अभियुक्त के पास अधिवक्ता नहीं है, तो यह अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह अदालत को अभियुक्त को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता के बारे में सूचित करे। अदालत ने कहा कि यह अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि अभियुक्त को उचित कानूनी सहायता मिले, ताकि सुनवाई निष्पक्ष और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार हो। 

कानूनी सहायता वकीलों के लिए मानदंड
सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी सहायता वकीलों के लिए भी मानदंड निर्धारित किए हैं। अदालत ने कहा कि गंभीर अपराधों के मामलों में, जहां आजीवन कारावास या मृत्युदंड की संभावना हो, केवल उन वकीलों को ही कानूनी सहायता वकील के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए, जिन्होंने आपराधिक कानून में कम से कम दस वर्षों का अनुभव प्राप्त किया हो। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि विधिक सेवा प्राधिकरण नव नियुक्त कानूनी सहायता वकीलों को उचित प्रशिक्षण प्रदान करें, ताकि वे मुकदमे को कुशलतापूर्वक चला सकें। 

न्यायालय की भूमिका
अदालत ने यह भी कहा कि न्यायालय का कर्तव्य है कि वह अभियुक्त को कानूनी सहायता के उसके अधिकार के बारे में जागरूक करे। यदि अभियुक्त कानूनी सहायता चाहता है, तो न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक कानूनी सहायता वकील उसे प्रतिनिधित्व प्रदान करे। अदालत ने यह भी कहा कि यदि कानूनी सहायता केवल प्रदान करने के लिए प्रदान की जाती है, तो इसका कोई उद्देश्य नहीं होगा; कानूनी सहायता प्रभावी होनी चाहिए। 

सुप्रीम कोर्ट के ये दिशा-निर्देश अभियोजन पक्ष और कानूनी सहायता वकीलों की भूमिका को स्पष्ट करते हैं, ताकि अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हो सके और सुनवाई निष्पक्ष हो। इन निर्देशों से यह सुनिश्चित होगा कि आपराधिक मुकदमों में कानूनी प्रक्रिया का पालन हो और अभियुक्तों को उचित कानूनी सहायता मिले।


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