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राजस्थान उच्च न्यायालय ने ओएनजीसी पर लगाया ₹50,000 का जुर्माना: दृष्टिहीन उम्मीदवार के साथ भेदभाव पर सख्त टिप्पणी



अजय त्यागी 2024-12-03 09:32:55 राजस्थान

राजस्थान उच्च न्यायालय - Photo : Internet
राजस्थान उच्च न्यायालय - Photo : Internet
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राजस्थान उच्च न्यायालय ने हाल ही में ओएनजीसी (ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड) पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना ओएनजीसी द्वारा दृष्टिहीन उम्मीदवार, रंजन टाक, की उच्च मेरिट के बावजूद उनकी नियुक्ति को अस्वीकार करने के कारण लगाया गया। कोर्ट ने इस मामले में समानता और भेदभाव के खिलाफ कानूनों के उल्लंघन पर कड़ी टिप्पणी की है। 

मामले की पृष्ठभूमि
ओएनजीसी ने 2018 में मैटेरियल्स मैनेजमेंट ऑफिसर के पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी। इन 49 पदों में से 19 दृष्टिहीन उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे। रंजन टाक, जो 30% दृष्टिहीनता के साथ आईआईटी रुड़की के स्नातक हैं, ने ओबीसी श्रेणी में आवेदन किया और 81.48% अंक प्राप्त किए। उनकी उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, ओएनजीसी ने उन्हें "विकलांगता की निम्न डिग्री" के आधार पर चिकित्सकीय रूप से अयोग्य घोषित कर दिया। 

कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने ओएनजीसी की कार्रवाई को अनुचित और भेदभावपूर्ण बताया। न्यायमूर्ति मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति मुनुरी लक्ष्मण की पीठ ने कहा, "यह तर्कहीन है कि 40% या उससे अधिक विकलांगता वाले व्यक्ति को ही नियुक्ति दी जाती है, जबकि 30% विकलांगता वाले व्यक्ति को अयोग्य घोषित किया जाता है।" कोर्ट ने यह भी कहा कि एक बार जब पद विशेष विकलांगता के लिए उपयुक्त घोषित किया गया हो, तो कम श्रेणी की विकलांगता वाले उम्मीदवार को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। 

ओएनजीसी की प्रतिक्रिया
ओएनजीसी ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने ओएनजीसी को रंजन टाक को आठ सप्ताह के भीतर नियुक्त करने का आदेश दिया और उन्हें अक्टूबर 2018 से लाभ देने का निर्देश दिया। 

महत्वपूर्ण कानूनी पहलू
यह मामला 'द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज एक्ट, 2016' के तहत विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के महत्व को दर्शाता है। कोर्ट ने कहा कि भले ही कम विकलांगता वाले व्यक्ति आरक्षण के लिए पात्र न हों, लेकिन यदि पद विशेष विकलांगता के लिए उपयुक्त घोषित किया गया हो, तो उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। 

इस निर्णय ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को विकलांग व्यक्तियों के साथ समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का पालन करने की याद दिलाई है। यह सुनिश्चित करता है कि योग्य विकलांग उम्मीदवारों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाएगा।


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