Sun, 29 December 2024 06:05:04am
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत पारिवारिक न्यायालय में भरण-पोषण के लिए चल रही कार्यवाही, वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत रखे गए आवासीय अधिकारों पर प्रभाव नहीं डालती। न्यायमूर्ति डी.के. सिंह ने इस मामले में कहा कि यह अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है।
मामले की पृष्ठभूमि
64 वर्षीय पिता ने 2007 के वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत अपने बच्चों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए आवेदन किया, आरोप लगाते हुए कि वे उन्हें आवास और भरण-पोषण प्रदान नहीं कर रहे थे। पिता ने यह भी दावा किया कि वह विदेश में रहने के बाद कुछ बीमारियों के साथ लौटे थे, और उन्हें उनके और उनकी पत्नी के संयुक्त स्वामित्व वाले अपार्टमेंट में रहने की अनुमति नहीं दी गई।
न्यायालय का आदेश
न्यायालय ने पिता को अस्थायी राहत प्रदान करते हुए उन्हें अपार्टमेंट में रहने की अनुमति दी, यह कहते हुए कि पारिवारिक न्यायालय में चल रही भरण-पोषण कार्यवाही के परिणाम की प्रतीक्षा की जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 12 के तहत भरण-पोषण का दावा करने से ट्रिब्यूनल के वरिष्ठ नागरिकों को आवास प्रदान करने के अधिकार पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
पक्षकारों की दलीलें
पिता के वकील ने तर्क दिया कि पारिवारिक न्यायालय के पास आवास प्रदान करने का अधिकार नहीं है, जबकि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के पास यह अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि पिता की आयु और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए, यदि बच्चे उन्हें अपार्टमेंट में रहने की अनुमति नहीं देते, तो उन्हें आवास की व्यवस्था करनी चाहिए।
अदालत की टिप्पणियाँ
अदालत ने कहा कि 2007 का अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है। अदालत ने यह भी कहा कि ट्रिब्यूनल का आवास प्रदान करने का अधिकार पारिवारिक न्यायालय में चल रही भरण-पोषण कार्यवाही से प्रभावित नहीं होता।
इस निर्णय ने वरिष्ठ नागरिकों के आवासीय अधिकारों को सुदृढ़ किया है, यह सुनिश्चित करते हुए कि भरण-पोषण के लिए चल रही कार्यवाही उनके आवासीय अधिकारों पर प्रभाव नहीं डालेगी। यह निर्णय वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।