Sun, 29 December 2024 11:51:24pm
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता को 'ड्रॉअर' नहीं माना जा सकता है। इसका सीधा प्रभाव यह है कि ऐसे हस्ताक्षरकर्ताओं को धारा 148 के तहत अंतरिम मुआवजा जमा करने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
मामले का संदर्भ
यह मामला श्री गुरुदत्त शुगर मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम पृथ्वीराज सयाजीराव देशमुख एवं अन्य (2024) से संबंधित है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय लिया था कि कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता को 'ड्रॉअर' नहीं माना जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "कंपनी के अधिकारी, जो चेक पर अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता हैं, उन्हें 'ड्रॉअर' नहीं माना जा सकता है।" अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 148 के तहत अंतरिम मुआवजा जमा करने का आदेश केवल 'ड्रॉअर' को ही दिया जा सकता है, न कि कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता को।
कानूनी दृष्टिकोण
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 148 के अनुसार, यदि अपीलकर्ता 'ड्रॉअर' है, तो उसे अंतरिम मुआवजा जमा करने का आदेश दिया जा सकता है। हालांकि, कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता को 'ड्रॉअर' नहीं माना जाता, इसलिए उन्हें यह आदेश नहीं दिया जा सकता।
अदालत की टिप्पणी
अदालत ने कहा, "अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता केवल कंपनी की ओर से हस्ताक्षर करता है और इसलिए उसे 'ड्रॉअर' नहीं माना जा सकता है।" अदालत ने यह भी कहा कि अपील करते समय, अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या मामला अपवादात्मक परिस्थितियों में आता है, जिसके तहत अंतरिम मुआवजा जमा करने का आदेश दिया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कंपनी के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं की जिम्मेदारी और अधिकारों को स्पष्ट करता है। यह निर्णय कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्यायिक विवेक की आवश्यकता को दर्शाता है।