Mon, 30 December 2024 12:08:05am
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि किसी अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन की मांग करने वाले वादी को अपनी तत्परता और इच्छा को साबित करना आवश्यक है। यदि वादी यह साबित करने में असमर्थ रहता है, तो उसकी याचिका खारिज की जा सकती है।
मामले का विवरण
यह मामला एक बिक्री समझौते से संबंधित था, जिसमें वादी ने 30 लाख रुपये के कुल मूल्य में से 12.5 लाख रुपये की बयाना राशि दी थी। वह प्रतिवादी से अनुबंध के अपने हिस्से को निष्पादित करने की मांग कर रहा था, लेकिन प्रतिवादी ने ऐसा नहीं किया। ट्रायल कोर्ट ने वादी के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन हाई कोर्ट ने वादी की तत्परता और इच्छा को साबित करने में असमर्थता के आधार पर निर्णय पलट दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया और कहा कि वादी को न केवल अपनी तत्परता और इच्छा को साबित करना चाहिए, बल्कि उसे यह भी दिखाना चाहिए कि उसके पास अनुबंध के अनुसार समय पर भुगतान करने के लिए आवश्यक धन उपलब्ध है। अदालत ने कहा, "तत्परता का अर्थ है वादी की अनुबंध को निष्पादित करने की क्षमता, जिसमें उसकी वित्तीय स्थिति शामिल होगी, और इच्छा वादी के आचरण से संबंधित है।"
तत्परता और इच्छा के बीच अंतर
अदालत ने तत्परता और इच्छा के बीच अंतर को स्पष्ट किया। तत्परता का अर्थ है वादी की क्षमता और संसाधन, जबकि इच्छा वादी के आचरण और मानसिकता को दर्शाती है। दोनों तत्व विशिष्ट निष्पादन के लिए आवश्यक हैं।
न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता
इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और प्रमाण की आवश्यकता है। वादी को अपनी तत्परता और इच्छा को साबित करने के लिए ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे, ताकि उसकी याचिका स्वीकार की जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अनुबंध कानून में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह वादी की जिम्मेदारी को स्पष्ट करता है। अब वादी को विशिष्ट निष्पादन की मांग करने से पहले अपनी तत्परता, इच्छा और वित्तीय क्षमता को साबित करना आवश्यक होगा।