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आवाज के नमूने देना आत्मदोष प्रमाण नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट का अहम निर्णय जो बदल सकता है कानूनी दृष्टिकोण



अजय त्यागी 2024-12-04 08:13:12 राजस्थान

राजस्थान हाईकोर्ट - Photo : Internet
राजस्थान हाईकोर्ट - Photo : Internet
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राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत आरोपी को स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे गवाही देने के लिए पूरी तरह मना किया जा सकता है। यह मामला भ्रष्टाचार अधिनियम के तहत आरोपी से आवाज के नमूने लेने के आदेश से जुड़ा था।

अनुच्छेद 20(3) की व्याख्या और अदालत का निष्कर्ष
न्यायमूर्ति समीर जैन की पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 20(3) का उद्देश्य केवल आरोपी को आत्मदोष प्रमाण (self-incrimination) से बचाना है, न कि गवाही देने से पूरी तरह छूट प्रदान करना। अदालत ने कहा कि आवाज के नमूने देना, जैसे रक्त का नमूना देना या फिंगरप्रिंट देना, आत्मदोष प्रमाण नहीं माना जा सकता। नमूनों की तुलना के बिना यह साबित नहीं होता कि आरोपी दोषी है।

मामले का विवरण: भ्रष्टाचार के आरोप और आवाज के नमूनों की मांग
मामला एक ऐसे आरोपी का था, जिस पर आरोप था कि उसने ठेकेदारों के बिल पास करने के बदले 1% कमीशन लिया। इस मामले में सीबीआई ने टेलीफोनिक बातचीत की रिकॉर्डिंग प्रस्तुत की और इसे आरोपी की आवाज से मिलाने के लिए आवाज के नमूनों की मांग की। मुख्य महानगर दंडाधिकारी (CJM) ने सीबीआई की याचिका पर आरोपी को आवाज के नमूने देने का आदेश दिया।

आरोपी की दलीलें और गोपनीयता का सवाल
आरोपी ने हाईकोर्ट में दलील दी कि आवाज का नमूना देना अनुच्छेद 20(3) और उसके मौलिक गोपनीयता अधिकार का उल्लंघन है। उनका तर्क था कि किसी भी व्यक्ति को उसके खिलाफ साक्ष्य देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। साथ ही, उन्होंने इसे उनकी गोपनीयता के अधिकार का हनन बताया।

सीबीआई का पक्ष और न्यायालय की टिप्पणी
सीबीआई ने तर्क दिया कि गोपनीयता का अधिकार पूर्ण नहीं है और सार्वजनिक हित के मामलों में यह झुक सकता है। जांच को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए आवाज के नमूने आवश्यक हैं। न्यायालय ने इस तर्क से सहमति जताई और कहा कि आवाज देना अन्य वैज्ञानिक तरीकों जैसे रक्त परीक्षण या फिंगरप्रिंट देने के समान है।

अदालत ने कहा, "जैसे फिंगरप्रिंट और डीएनए परीक्षण व्यक्ति की पहचान के लिए महत्वपूर्ण हैं, वैसे ही आवाज का नमूना जांच के लिए अनिवार्य हो सकता है। इसे आत्मदोष प्रमाण नहीं माना जा सकता।"

अनुच्छेद 20(3) और गोपनीयता पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ
राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Ritesh Kumar vs. State of Uttar Pradesh और Pravin Sinh Nrupat Sinh Chauhan vs. State of Gujarat मामलों का हवाला देते हुए कहा कि गोपनीयता का अधिकार पूर्ण नहीं है। सार्वजनिक हित में इसे संतुलित किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि बीएनएसएस की धारा 349 के तहत क्लास-1 मजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया है कि वह जांच के लिए किसी भी व्यक्ति को आवाज का नमूना देने का निर्देश दे सकता है।

अदालत का अंतिम निर्णय और निष्कर्ष
अदालत ने आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया। अदालत ने कहा कि आरोपी की आवाज के नमूने लेना सार्वजनिक हित में है और यह अनुच्छेद 20(3) या गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता।


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