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राजस्थान हाई कोर्ट का अहम फैसला: मुस्लिम विवाह प्रमाणपत्रों में उर्दू की जगह हिंदी या अंग्रेजी हो



अजय त्यागी 2024-12-04 08:35:19 राजस्थान

राजस्थान हाई कोर्ट - Photo : Internet
राजस्थान हाई कोर्ट - Photo : Internet
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राजस्थान हाई कोर्ट ने मुस्लिम विवाहों के प्रमाणपत्र (निकाहनामा) की भाषा को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने कहा कि एक पवित्र संबंध जैसे विवाह को प्रमाणित करने के लिए ऐसा दस्तावेज होना चाहिए जो स्पष्ट, स्पष्ट और पारदर्शी हो, और इसे उर्दू जैसी भाषा में नहीं जारी किया जाना चाहिए, जो समाज में व्यापक रूप से नहीं जानी जाती, विशेष रूप से सरकारी कर्मचारियों और कोर्ट के अधिकारियों के लिए। इस निर्णय ने समाज में चर्चाएं छेड़ दी हैं, और यह सवाल उठता है कि क्या उर्दू के स्थान पर अन्य भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

उर्दू में निकाहनामा: कोर्ट ने उठाए महत्वपूर्ण सवाल
कोर्ट का यह निर्णय एक याचिका पर आधारित था, जिसमें एक FIR दर्ज करने को चुनौती दी गई थी। याचिका के दौरान, कोर्ट ने देखा कि जिन दस्तावेजों पर आरोपियों ने भरोसा किया था, वह उर्दू में थे। इसके बाद, कोर्ट ने कहा कि उर्दू का ज्ञान न होने की स्थिति में उन दस्तावेजों को समझना मुश्किल हो जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि निकाहनामा को साक्ष्य के रूप में लिया जा सकता है, लेकिन जब उसका कंटेंट सरकारी कर्मचारियों, सार्वजनिक/निजी संस्थाओं और अन्य विभागों के लिए समझ में नहीं आता, तो यह समस्याएं पैदा कर सकता है और जटिलताएं बढ़ा सकता है।

निकाहनामा का प्रमाण: हिंदी या अंग्रेजी में होने से होगा फायदा
न्यायमूर्ति फार्जंद अली की पीठ ने कहा कि यदि निकाहनामा के प्रिंटेड प्रोफार्मा में हिंदी या अंग्रेजी शामिल होती, तो यह जटिलताओं को हल करने में मदद करता। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि हर जिले के जिला मजिस्ट्रेट/कलेक्टर को एक रजिस्टर रखना चाहिए, जिसमें केवल उन व्यक्तियों का रिकॉर्ड हो, जो निकाह पढ़ सकते हैं। केवल वही लोग निकाह की रस्म अदा करने के पात्र होंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस कार्य में शामिल व्यक्तियों को ऐसी भाषा में प्रमाणपत्र जारी नहीं करना चाहिए जो समाज में सामान्य रूप से नहीं जानी जाती, खासकर सरकारी कर्मचारियों और कोर्ट अधिकारियों के लिए।

कोर्ट की दृष्टि: सामाजिक स्तर पर सरलता और पारदर्शिता जरूरी
कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि निकाहनामा को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वह समाज के सभी वर्गों, विशेष रूप से सरकारी कर्मचारियों, अदालत के अधिकारियों और अन्य संस्थाओं के लिए समझने योग्य हो। कोर्ट ने इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए संबंधित अधिकारियों से इस पर विचार करने के लिए कहा, ताकि इस समस्या का समाधान किया जा सके और भविष्य में ऐसी जटिलताओं से बचा जा सके।

निकाह की प्रक्रिया को मान्यता: क्या सभी को मिलेगी अनुमति?
राजस्थान हाई कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि जिले के कलेक्टर को उन व्यक्तियों का रिकॉर्ड रखना चाहिए, जो निकाह पढ़ने के योग्य हों। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि निकाह पढ़ने का अधिकार किसी को भी नहीं दिया जा सकता और इसे केवल योग्य व्यक्तियों तक सीमित किया जाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि निकाह की प्रक्रिया कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो और कोई भी व्यक्ति अवैध तरीके से इस प्रक्रिया का हिस्सा न बने।

कोर्ट का आदेश और राज्य सरकार की जिम्मेदारी
कोर्ट ने मामले में राज्य के वकील को निर्देश दिया कि वह विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों से इस मुद्दे पर विचार करें और अगले सुनवाई में कोर्ट को इसके परिणाम से अवगत कराएं। साथ ही, गृह मंत्रालय के सचिव को भी अगली सुनवाई में उपस्थित होने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार निकाहनामा के प्रमाणपत्रों की भाषा को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करेगी।


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