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राजस्थान में दाल और मैदा मिल मालिकों का विरोध: सरकार के कृषि शुल्क के खिलाफ व्यापारी एकजुट



अजय त्यागी 2024-12-04 09:56:19 राजस्थान

बीकानेर कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करते व्यापारी
बीकानेर कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करते व्यापारी
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राजस्थान में बुधवार को दाल और मैदा मिल प्रोसेसिंग यूनिट्स पूरी तरह से बंद हो गईं। राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ व्यापारी एकजुट हो गए हैं, जो कृषि जिंस के कच्चे माल पर कृषि मंडी शुल्क और कृषक कल्याण शुल्क लगाने का विरोध कर रहे हैं। यह कदम व्यापारियों के लिए एक बड़ा आर्थिक संकट बन सकता है, खासकर ऐसे समय में जब बीकानेर जैसे क्षेत्रों में बंपर फसलें आ रही हैं। व्यापारी न केवल अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को प्रभावित होने के कारण चिंतित हैं, बल्कि वे इसे व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ डालने वाला कदम भी मानते हैं।

शुल्क का विरोध: क्यों बंद हुईं दाल और मैदा मिलें?
राजस्थान दाल मिल महासंघ के प्रदेश महासचिव जयकिशन अग्रवाल ने बताया कि राज्य भर में लगभग सभी दाल और मैदा प्रोसेसिंग यूनिट्स बुधवार को बंद रहीं। बीकानेर जिले में अनाज मंडी समेत करीब 40 मंडियां पूरी तरह से बंद रही। यह आंदोलन उस समय किया गया जब सरकार ने बाहर से आयातित कृषि जिंस पर कृषि मंडी शुल्क और कृषक कल्याण शुल्क लगाने का निर्णय लिया था। यह शुल्क व्यापारियों के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है, क्योंकि इन पर पहले से ही अतिरिक्त लागत का दबाव है और अब इस नए निर्णय से उनका कारोबार और अधिक प्रभावित हो सकता है।

बीकानेर में 100 करोड़ का नुकसान: व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ
बीकानेर में, जहां मूंगफली की बंपर फसल आने का समय है, व्यापारियों को नुकसान हुआ। जयकिशन अग्रवाल ने बताया कि बीकानेर की मंडी में एक दिन का कारोबार करीब 100 करोड़ रुपये तक का था, जो पूरी तरह से प्रभावित हुआ। इस दौरान, बिक्री के लिए आई फसलों की बोली नहीं लगी, और कृषि उत्पादों का व्यवसाय ठप हो गया। बीकानेर में ग्वार गम मिल और तेल मिल जैसी इकाइयां भी बंद रही, जिससे व्यापारी वर्ग को भारी वित्तीय नुकसान हुआ।

500 करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित: प्रदेश भर में व्यापक असर
अग्रवाल ने आगे बताया कि राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी व्यापारियों को इसी प्रकार का नुकसान हुआ। प्रदेशभर में करीब 500 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार प्रभावित हुआ। राजस्थान की 466 दाल प्रोसेसिंग इकाइयां सालभर काम करती हैं, लेकिन अब सरकार के निर्णय के कारण इनकी गतिविधियां भी थम सी गई हैं। व्यापारियों का कहना है कि उन्हें राज्य की मंडियों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना पड़ता, क्योंकि जरूरी कच्चा माल बाहर से आयात करना पड़ता है। ऐसे में जब यह माल राज्य में आता है, तो व्यापारी को अतिरिक्त शुल्क चुकाना पड़ता है, जबकि उन्हें मंडी समिति से किसी प्रकार की सेवा नहीं मिलती।

व्यापारियों का दवाब: दोहरा शुल्क व्यापारियों के लिए एक बोझ
व्यापारी समुदाय ने सरकार के इस निर्णय को अत्यधिक अव्यावहारिक बताया है। उनका कहना है कि कृषि मंडी शुल्क और कृषक कल्याण शुल्क की व्यवस्था व्यापारियों पर दोहरा बोझ डालती है। वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जब कच्चा माल राज्य में आता है, तो व्यापारी को सेवा देने के नाम पर कोई सहयोग नहीं मिलता, और इसके बावजूद इस पर शुल्क लिया जा रहा है। यह नीति व्यापारियों के लिए वित्तीय बोझ को और बढ़ाती है, जो पहले से ही महंगाई और अन्य शुल्कों के कारण परेशान हैं।

संबंधित अधिकारियों को ज्ञापन सौंपा: व्यापारी चाहते हैं तत्काल समाधान
व्यापारियों ने बुधवार को इस मुद्दे पर अपना विरोध दर्ज करते हुए जिला कलेक्टर को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। व्यापारी चाहते हैं कि सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करे और इसे अव्यावहारिक मानते हुए इसे तुरंत वापस ले। वे इस मुद्दे को लेकर सरकार से चर्चा करने के लिए तैयार हैं, ताकि एक बेहतर समाधान निकाला जा सके और व्यापारियों को इस अतिरिक्त शुल्क से बचाया जा सके।