Sun, 29 December 2024 06:25:25am
गया, बिहार – जहां हर कोने में इतिहास बसा हुआ है, वहीं यहां के एक और किसान ने अपनी मेहनत और लगन से खुद को इतिहास में अमर कर लिया है। यह कहानी है श्याम सुंदर चौहान की, जिन्हें अब "Mountain Man" के नाम से जाना जा रहा है। उनके द्वारा की गई कड़ी मेहनत और संघर्ष ने उन्हें देशभर में चर्चित कर दिया है। चौहान ने 25 सालों की कठिन मेहनत से 2,000 फीट ऊंची वनावर पहाड़ियों में एक रास्ता खोद डाला है, जिससे लाखों श्रद्धालुओं को बाबा सिद्धेश्वरनाथ मंदिर तक पहुंचने में सुविधा मिलती है। आइए जानते हैं उनके इस अद्वितीय कार्य की पूरी कहानी।
25 साल की कठिन मेहनत: एक कठिन यात्रा की शुरुआत
श्याम सुंदर चौहान ने इस ऐतिहासिक काम की शुरुआत 25 साल पहले, जब उनकी उम्र 55 साल थी। चौहान के लिए यह काम एक मिशन की तरह था। वह अक्सर यह सोचते थे कि श्रद्धालुओं को बाबा सिद्धेश्वरनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी रास्तों पर कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए उन्होंने एक कड़ी मेहनत का सिलसिला शुरू किया और एक हथौड़ा, छेनी और कुदाल के सहारे उन्होंने पहाड़ों में रास्ता बनाना शुरू किया।
रोज़ाना की मेहनत: काम के प्रति अपार लगन
श्याम सुंदर चौहान ने शुरुआत में सोमवार के दिन काम करने की योजना बनाई थी, जिसे वह भगवान शिव को एक भेंट मानते थे। लेकिन जैसे-जैसे रास्ता बनता गया, उनका उत्साह और बढ़ता गया। चौहान ने सप्ताह के कई दिन इस काम में लगाए और 80 साल की उम्र में भी वह लगातार पहाड़ों पर चढ़कर काम करते रहे।
आर्थिक मदद का न लेना: स्वावलंबन की मिसाल
चौहान ने कभी किसी से पैसे या वित्तीय सहायता नहीं ली। वह अपनी खेती से जो कुछ भी कमाते, उसी से इस रास्ते का निर्माण करते रहे। उनका मानना है कि यह उनका व्यक्तिगत प्रयास है और इसमें किसी की मदद की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं किसी से एक पैसा भी नहीं लेता। जो भी कमाई होती है, वह इस सड़क के निर्माण में लगाता हूं।”
3 किलोमीटर लंबा रास्ता: यात्रा को बनाया आसान
चौहान की इस मेहनत ने अंततः 3 किलोमीटर लंबा रास्ता तैयार कर दिया, जो पहले 20 किलोमीटर लंबा था। अब श्रद्धालु आसानी से और बिना किसी कठिनाई के मंदिर तक पहुंच सकते हैं। चौहान ने बताया कि खासकर मानसून के मौसम में यह रास्ता बहुत काम आता है, जब अन्य रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं। उनकी इस मेहनत ने हजारों भक्तों के लिए राहत का काम किया है।
जारी है कार्य
श्याम सुंदर चौहान का उत्साह और समर्पण अब भी उसी तरह बना हुआ है, जैसा कि 25 साल पहले था। वह एक बार पहाड़ से गिर गए थे और बेहोश हो गए थे, लेकिन जैसे ही उन्हें होश आया, उन्होंने अपना काम फिर से शुरू कर दिया। उनकी अनथक मेहनत और प्रेरणा को देखते हुए अब लोग उन्हें दूसरा “Mountain Man” मानते हैं।
स्वीकृति की इच्छा: क्या श्याम सुंदर चौहान को मिलेगा सम्मान?
श्याम सुंदर चौहान का सपना है कि इस रास्ते का नाम उनके नाम पर रखा जाए, ताकि उनके द्वारा किए गए इस काम की हमेशा याद रखी जा सके। उन्होंने कहा, “अगर सरकार मेरे काम को मान्यता देना चाहती है, तो इस सड़क का नाम ‘श्याम सुंदर चौहान मार्ग’ रखा जाए। यह मेरे प्रयासों का सम्मान होगा।”
स्थानीय लोगों का समर्थन और मान्यता
श्याम सुंदर चौहान के काम को लेकर स्थानीय लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते। उनकी मेहनत और संघर्ष को देखकर उन्हें अब "Mountain Man" के समान सम्मान और मान्यता मिलनी चाहिए। चौहान की कहानी एक प्रेरणा है, जो यह दिखाती है कि किसी भी उद्देश्य को पूरा करने के लिए आत्मविश्वास और समर्पण सबसे जरूरी हैं।
तुलनाएँ: दशरथ मांझी से तुलना
चौहान के इस अद्वितीय प्रयास को लेकर लोग उन्हें दशरथ मांझी के समान मानते हैं, जो कि "Mountain Man" के रूप में प्रसिद्ध हुए थे। दोनों के कार्यों में समानता है, जहां एक ने पहाड़ों को काट कर रास्ता बनाया और दूसरे ने अपने संघर्ष से दुनिया को एक नया उदाहरण दिया। चौहान का काम भी एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक प्रयास है, जिसे लोग हमेशा याद रखेंगे।
एक प्रेरणा की कहानी
श्याम सुंदर चौहान की कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादा मजबूत हो और मेहनत ईमानदारी से की जाए, तो कोई भी कार्य संभव हो सकता है। 80 साल की उम्र में भी उनका जज्बा और संघर्ष हमें प्रेरित करता है। यह न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयास का परिणाम है, बल्कि यह उन लाखों श्रद्धालुओं के लिए भी एक तोहफा है, जो अब आसानी से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। अब यह देखना होगा कि सरकार उनके योगदान को कैसे सम्मानित करती है और क्या उनका सपना "श्याम सुंदर चौहान मार्ग" का सच होता है या नहीं।