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गुजरात में पकड़ी गई बेशुमार फर्जी डिग्रियों की तस्करी: 13 गिरफ्तार



अजय त्यागी 2024-12-05 09:23:24 गुजरात

बेशुमार फर्जी डिग्रियां - Photo : Etvbharat
बेशुमार फर्जी डिग्रियां - Photo : Etvbharat
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गुजरात के सूरत शहर में फर्जी डॉक्टरों के एक बड़े रैकेट का खुलासा हुआ है। इस रैकेट के अंतर्गत सैकड़ों लोगों को फर्जी BEMS (बैचलर ऑफ इलेक्ट्रो-होम्योपैथी मेडिसिन एंड सर्जरी) डिग्रियां बेचने का काम किया जा रहा था। सूरत पुलिस ने इस रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए 13 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से 10 व्यक्ति फर्जी डॉक्टर के तौर पर काम कर रहे थे। पुलिस ने इन डॉक्टरों के “क्लिनिक” से एलोपैथी और होम्योपैथी की दवाइयाँ, सिरप की बोतलें और प्रमाणपत्र भी बरामद किए हैं। आइए जानते हैं इस रैकेट से जुड़ी पूरी जानकारी।

फर्जी डिग्रियों का कारोबार: रसेश गुजराती और बीके रावत की करतूत
पुलिस के अनुसार, इस रैकेट का संचालन रसेश गुजराती और बीके रावत कर रहे थे। दोनों आरोपियों ने फर्जी BEMS डिग्रियां बेचने का एक नेटवर्क शुरू किया था, जिसमें 70,000 रुपये में एक डिग्री बेची जाती थी। सूरत निवासी रसेश गुजराती और अहमदाबाद निवासी बीके रावत के अलावा, उनके सहयोगी इरफान सैयद को भी गिरफ्तार किया गया है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि यह रैकेट गुजराती और रावत के द्वारा "बोर्ड ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथिक मेडिसिन, अहमदाबाद" के नाम से चलाया जा रहा था।

कितनी डिग्रियां बेची गईं: 1500 लोगों को मिला धोखा
गुजराती और रावत द्वारा फर्जी डिग्रियां बेचने का यह कारोबार इतना बड़ा था कि अब तक दोनों ने लगभग 1500 लोगों को यह डिग्री दी है। इनमें से कुछ लोग तो केवल 10वीं तक पढ़े थे। यह डिग्री लेने वालों को आश्वासन दिया गया था कि वे इस डिग्री के आधार पर न केवल होम्योपैथी, बल्कि एलोपैथी में भी प्रैक्टिस कर सकते हैं।

फर्जी कॉलेज से फर्जी डिग्रियां तक: रसेश गुजराती की शुरुआत
रसेश गुजराती ने 2002 में सूरत के गोपीपुरा इलाके में एक कॉलेज खोला था, जिसमें उन्होंने इलेक्ट्रो-होम्योपैथी के तीन साल के कोर्स की शुरुआत की थी। हालांकि, इस कॉलेज को नुकसान हुआ क्योंकि गुजराती को छात्रों की कमी का सामना करना पड़ा। फिर उसने बीके रावत से संपर्क किया और दोनों ने मिलकर इस फर्जी डिग्री का कारोबार शुरू किया।

फर्जी वेबसाइट और सालाना शुल्क की वसूली
रावत ने इस रैकेट को और बड़ा करने के लिए एक वेबसाइट भी बनाई, जिसका नाम था "www.behmgujarat.com"। इस वेबसाइट के माध्यम से वे फर्जी डिग्री धारकों की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया करते थे। इसके साथ ही, हर साल फर्जी डॉक्टरों से 3,000 रुपये का रिन्यूवल शुल्क लिया जाता था। रिन्यूवल शुल्क के बारे में सवाल उठाने वालों को इरफान सैयद धमकाता था।

पुलिस की छापेमारी: फर्जी डिग्रियों का भंडाफोड़
पुलिस ने जब अहमदाबाद में रावत के घर पर छापेमारी की, तो वहां से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद हुए। पुलिस को 10 खाली डिग्रियां, 30 डिग्रियां जिन पर नाम लिखे थे, 160 आवेदन फॉर्म, 12 आई-कार्ड और एक रजिस्टर मिला जिसमें 1630 फर्जी डॉक्टरों का विवरण था। इन सभी डॉक्टरों को यह फर्जी डिग्री दी गई थी।

गुजराती और रावत का एकमात्र उद्देश्य: व्यवसायिक लाभ
इस पूरे रैकेट के पीछे दोनों आरोपियों का उद्देश्य सिर्फ एक था—व्यवसायिक लाभ। गुजराती और रावत ने मिलकर यह नेटवर्क तैयार किया था, जिसमें वे हर महीने हजारों रुपये कमाते थे। इन लोगों ने न केवल एक पूरी अवैध डिग्री उद्योग खड़ा किया, बल्कि हजारों लोगों की जान को भी खतरे में डाला।

फर्जी डिग्रियों से समाज पर असर: गंभीर स्वास्थ्य खतरे
इस रैकेट के द्वारा दी गई फर्जी डिग्रियों का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ा। जिन लोगों ने इन फर्जी डिग्रियों को खरीदी थी, वे स्वास्थ्य सेवाओं में घातक गलतियां कर सकते थे। इससे न केवल मरीजों की जान को खतरा था, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में भी अव्यवस्था और धोखाधड़ी का माहौल बन गया था।

अब तक की कार्रवाई और आगे की योजना
पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें न्यायालय में पेश किया। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि यह जांच अभी जारी है और कुछ और लोगों की गिरफ्तारी हो सकती है। साथ ही, पुलिस ने जनता से अपील की है कि वे ऐसे फर्जी डॉक्टरों से सावधान रहें जो बिना वैध डिग्रियों के स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं।

फर्जी डिग्री रैकेट का खात्मा आवश्यक
इस मामले ने यह साबित कर दिया कि मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में कड़ी निगरानी की जरूरत है। फर्जी डिग्रियों का कारोबार न केवल लोगों की जान को खतरे में डालता है, बल्कि समाज में अव्यवस्था फैलाने का काम करता है। इस रैकेट को पकड़ने के बाद पुलिस ने जो कार्रवाई की है, वह एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन अब भी ऐसे कई रैकेट हो सकते हैं जिनका पर्दाफाश किया जाना बाकी है।

Source : Etvbharat