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अचल संपत्ति के कब्जे के लिए अलग मुकदमे की आवश्यकता नहीं जब बिक्री समझौते में कब्जा हस्तांतरण शामिल - सुप्रीम कोर्ट



अजय त्यागी 2024-12-06 06:00:05 दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
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सर्वोच्च न्यायालय ने अचल संपत्ति के विवादों में एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी अचल संपत्ति के बिक्री समझौते में कब्जे का हस्तांतरण निहित है, तो वादी को विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 22 के तहत कब्जे के लिए अलग से मुकदमा दायर करने की आवश्यकता नहीं होगी। यह फैसला अचल संपत्ति के लेनदेन और विवादों में न्याय की प्रक्रिया को और भी पारदर्शी और सरल बनाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि: दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय
इस मामले की शुरुआत दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले से हुई, जिसमें उच्च न्यायालय ने हरियाणा के गुड़गांव में स्थित भूमि के बिक्री समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन के लिए दायर मुकदमे को दिल्ली की अदालत में गैर-प्रभावी माना। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह मामला उस क्षेत्रीय न्यायालय में दायर होना चाहिए, जहां संपत्ति स्थित है।

कब्जे की दलील और धारा 22 के तहत विवाद
वादी ने तर्क दिया कि मुकदमे में धारा 22 के अनुसार कब्जे के लिए अलग से राहत का दावा नहीं किया गया था, इसलिए इसे केवल "व्यक्तिगत कार्रवाई" माना जाए और यह धारा 16 सीपीसी के तहत उस स्थान पर दायर किया जा सकता है, जहां प्रतिवादी निवास करता है।

बाबूलाल बनाम हजारीलाल के मामले का संदर्भ
न्यायालय ने बाबूलाल बनाम हजारीलाल किशोरीलाल (1982) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि यदि बिक्री समझौते में कब्जे का हस्तांतरण शामिल है, तो विशिष्ट प्रदर्शन के लिए दायर मुकदमे में कब्जे के लिए अलग से दावा करना अनिवार्य नहीं है। बाबूलाल मामले में न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि ऐसे मामलों में कब्जे का हस्तांतरण विशिष्ट प्रदर्शन के डिक्री का स्वाभाविक हिस्सा होता है।

अदालत की विस्तृत व्याख्या: कब्जे का हस्तांतरण कब निहित होता है?
न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि बिक्री समझौते के तहत समझौते में स्पष्ट रूप से यह कहा गया हो कि संपत्ति का कब्जा बिक्री मूल्य के भुगतान पर हस्तांतरित होगा, तो कब्जे का हस्तांतरण उस समझौते में निहित माना जाएगा।
साथ ही, न्यायालय ने कहा कि जहां संपत्ति किसी तीसरे पक्ष के कब्जे में हो, वहां वादी को कब्जे के लिए स्पष्ट रूप से अलग राहत का दावा करना होगा।

बाबूलाल बनाम एडकॉन के फैसले में अंतर
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि एडकॉन इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम दौलत (2001) मामले में दिए गए निर्णय को वर्तमान मामले में लागू नहीं किया जा सकता। एडकॉन मामले में यह कहा गया था कि विशिष्ट प्रदर्शन के लिए दायर मुकदमा एक "व्यक्तिगत कार्रवाई" है और उसमें कब्जे के लिए अलग मुकदमा आवश्यक है। जबकि बाबूलाल मामले में विशिष्ट प्रदर्शन के तहत कब्जे के अधिकार को बिक्री समझौते का स्वाभाविक हिस्सा माना गया।

अदालत का अंतिम निष्कर्ष और आदेश
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 22 और 28 तथा संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 55 के अंतर्गत कब्जे का हस्तांतरण केवल एक सहायक पहलू है और इसे अलग से मांगने की आवश्यकता नहीं है।
साथ ही, अदालत ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि वादी द्वारा प्रतिवादियों को बची हुई 5% राशि के भुगतान पर संपत्ति का कब्जा स्थानांतरित करने की बात समझौते में स्पष्ट थी।

निर्णय का प्रभाव: संपत्ति विवादों में स्पष्टता और सरलता
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय संपत्ति विवादों में न केवल न्याय प्रक्रिया को अधिक सुगम बनाएगा, बल्कि उन मामलों में भी स्पष्टता लाएगा जहां बिक्री समझौतों में कब्जे का हस्तांतरण शामिल है। इससे पक्षकारों के लिए न्याय प्राप्ति की प्रक्रिया तेज और कुशल होगी।


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