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दिल्ली उच्च न्यायालय का अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता पर महत्वपूर्ण निर्णय: समझौते की प्रकृति पर नया दृष्टिकोण



अजय त्यागी 2024-12-07 07:26:15 दिल्ली

दिल्ली उच्च न्यायालय - Photo : Internet
दिल्ली उच्च न्यायालय - Photo : Internet
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हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जिसमें न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2(1)(f) की व्याख्या की है। इस निर्णय ने मध्यस्थता समझौतों की प्रकृति और उनके लागू होने वाले कानूनों के संबंध में नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं।

मामले का सारांश: 
यह याचिका मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत दायर की गई थी, जिसमें मध्यस्थता पुरस्कारों को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह केन्या का निवासी है, इसलिए यह पुरस्कार अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक पुरस्कार है, जिसे 'पेटेंट अवैधता' के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, क्योंकि धारा 34(2A) के अनुसार, इस आधार पर हस्तक्षेप की गुंजाइश सीमित है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास पासपोर्ट जैसे दस्तावेज हैं, जो उनके केन्याई नागरिक होने को स्पष्ट करते हैं।

न्यायालय की टिप्पणियाँ: 
न्यायालय ने मध्यस्थता अधिनियम की धारा 2(1)(f) की व्याख्या करते हुए कहा कि यह एक गैर-परिहार्य प्रावधान है, जिसे पक्षों की सहमति से भी हटाया नहीं जा सकता। अर्थात, यदि यह स्थापित हो जाता है कि मध्यस्थता अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक है, तो उसे घरेलू मध्यस्थता में परिवर्तित नहीं किया जा सकता, भले ही पक्ष इस पर सहमत हों। न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय 'AMWAY इंडिया एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम रविंद्रनाथ राव' (2021) का संदर्भ देते हुए कहा कि यदि पक्षों में से कोई भी धारा 2(1)(f) की आवश्यकताओं को पूरा करता है, तो मध्यस्थता अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक होगी, चाहे लेन-देन की प्रकृति कुछ भी हो।

प्रभाव और महत्व: 
इस निर्णय ने मध्यस्थता समझौतों की प्रकृति और उनके लागू होने वाले कानूनों के संबंध में स्पष्टता प्रदान की है। यह मध्यस्थता प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं को भी रेखांकित करता है, जिससे विवाद समाधान के लिए एक सुसंगत और पूर्वानुमेय ढांचा स्थापित होता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय मध्यस्थता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता की प्रकृति और उसके लागू होने वाले कानूनों के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है। यह निर्णय मध्यस्थता प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमाओं को भी स्पष्ट करता है, जिससे विवाद समाधान के लिए एक सुसंगत और पूर्वानुमेय ढांचा स्थापित होता है।


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