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हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) और 14(2) की विवादास्पद व्याख्या पर सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी



अजय त्यागी 2024-12-10 08:41:23 दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
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9 दिसंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (HSA) की धारा 14(1) और 14(2) के बीच आपसी संबंधों और इसके विभिन्न व्याख्याओं पर गहरी चिंता जताई। न्यायमूर्ति पीएस नरसिंहा और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। मामले में यह सवाल था कि क्या एक महिला को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार मिलता है, जब उसे वह संपत्ति पहले से मौजूद अधिकार के रूप में मिलती है, या क्या उसे कोई सीमित अधिकार ही मिलता है।

महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में भिन्न दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विभिन्न न्यायिक निर्णयों में इन दोनों धाराओं की व्याख्याओं में भिन्नताएँ आई हैं। एक लाइन के फैसले महिलाओं के पक्ष में हैं, जैसे वी. तुलसम्मा वि. सेशा रेड्डी (1977), जिसमें अदालत ने यह माना कि यदि संपत्ति महिला को पहले से मौजूदा अधिकार के रूप में मिलती है, तो वह संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व की हकदार होती है। इसके विपरीत, कुछ निर्णय ऐसे भी हैं, जैसे साधु सिंह वि. गुरुद्वारा साहिब (2006), जिन्होंने यह कहा कि यदि संपत्ति पहले से किसी विशेष रूप से सीमित अधिकार के तहत मिलती है, तो महिला को पूर्ण स्वामित्व नहीं मिलता।

कोर्ट ने साफ किया: धारा 14(1) की प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में वी. तुलसम्मा के फैसले को प्राथमिकता दी, जिसमें कहा गया था कि धारा 14(2) केवल उन स्थितियों में लागू होती है जब एक महिला को पहली बार स्वतंत्र अधिकार प्रदान किए जाते हैं, जबकि पहले से मौजूद अधिकारों को किसी दस्तावेज़, वसीयत या समझौते द्वारा केवल पुष्ट किया जाता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि संपत्ति को महिला को उसके पहले से मौजूद अधिकार के आधार पर दिया जाता है, तो उसे धारा 14(1) के तहत पूर्ण अधिकार मिलेगा, चाहे उस पर कोई प्रतिबंध क्यों न हो।

विवाद की शुरुआत: कानूनी प्रक्रिया में उलझनें
यह विवाद तब शुरू हुआ जब एक महिला ने अपने पति की वसीयत के आधार पर प्राप्त संपत्ति को विक्रय किया। इस पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों ने दलील दी कि महिला को केवल सीमित अधिकार था, न कि पूर्ण अधिकार। पहले की अदालतों ने वी. तुलसम्मा के फैसले को सही माना, लेकिन उच्च न्यायालय ने साधु सिंह के फैसले को सही ठहराया, जिसमें महिला के अधिकार को सीमित किया गया। इस विरोधाभास ने मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचाया।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश: पुनः विचार की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे कहा कि इस प्रकार के मामलों में सटीक और स्पष्ट निर्णय की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में इस प्रकार के कानूनी उलझनों से बचा जा सके। अदालत ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजने का आदेश दिया ताकि एक बड़े बेंच द्वारा विभिन्न निर्णयों के आपसी मतभेदों को सुलझाया जा सके।

महिला के अधिकारों की सुरक्षा में स्पष्टता की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय के माध्यम से न केवल धारा 14(1) और 14(2) के आपसी संबंधों को स्पष्ट किया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि महिलाओं के अधिकारों के लिए कोई भी कानूनी प्रक्रिया भ्रमित न हो। अदालत ने इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने और न्यायिक गलती से बचने के लिए आवश्यक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत की यह टिप्पणी निश्चित रूप से आने वाले मामलों में मार्गदर्शन करेगी।


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