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व्हाट्सएप चैट हो सकती है अपराध का कारण? सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला, डिजिटल युग में निजता और कानून का टकराव



अजय त्यागी 2024-12-13 06:56:35 दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले पर विचार करने का निर्णय लिया, जिसमें यह तय किया जाएगा कि निजी व्हाट्सएप संदेशों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं 153A और 295A लागू हो सकती हैं या नहीं। यह फैसला डिजिटल संचार की सीमा और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के दायरे को लेकर गहन कानूनी बहस को जन्म दे सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि: व्हाट्सएप संदेशों से उठा विवाद
मामला महाराष्ट्र में दर्ज FIR नंबर 332/2020 से जुड़ा है।

  • आरोप है कि बल महाराज उर्फ संतोष दत्तात्रय कोली ने एक निजी व्हाट्सएप ग्रुप में भड़काऊ संदेश साझा किए।
  • FIR में IPC की धारा 153A (समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना), 295A (धार्मिक भावनाएं भड़काना), 504 (उकसाने के इरादे से अपमान), और 505 (सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देने वाले बयान) लगाई गई हैं।

इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद कोली ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उनके वकील सीनियर एडवोकेट सुनील फर्नांडीस ने दलील दी कि निजी संदेश सार्वजनिक कार्यों की श्रेणी में नहीं आते।

कानूनी प्रश्न: निजी और सार्वजनिक के बीच सीमा रेखा

  1. धारा 153A और 295A की प्रासंगिकता:
    धारा 153A उन कार्यों को दंडित करती है, जो धर्म, जाति या अन्य आधारों पर वैमनस्य पैदा करते हैं।
    धारा 295A जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले कार्यों के लिए है।
    सवाल यह है कि क्या व्हाट्सएप ग्रुप में साझा किए गए संदेश “सार्वजनिक दृश्य” के तहत आते हैं।
  2. निजी संवाद बनाम सार्वजनिक उपद्रव:
    FIR में धारा 504 और 505 का भी उल्लेख है, जो सार्वजनिक उपद्रव और शरारत से संबंधित हैं।
    बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि ये संदेश एक बंद समूह तक सीमित थे और सार्वजनिक अपराध की परिभाषा में नहीं आते।

सुप्रीम कोर्ट की प्रारंभिक टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने कोली के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगाते हुए प्रमोद सुर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले का संदर्भ दिया।

  • कोर्ट ने कहा कि निजी व्हाट्सएप संदेश स्वतः सार्वजनिक कार्यों में परिवर्तित नहीं हो जाते।
  • न्यायालय ने टिप्पणी की, “निजी संचार, जो सामान्य जनता के लिए उपलब्ध नहीं है, IPC की धारा 153A और 295A के लिए आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता। यहां तक कि अगर आरोपों को सही माना जाए, तो इन अपराधों के आवश्यक तत्व सिद्ध नहीं होते।”

अंतरिम राहत: कोली को मिली फौरी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सहित अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।

  • FIR नंबर 332/2020 से संबंधित सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी गई।
  • न्यायालय अब इस प्रश्न की गहराई में जाएगा कि क्या निजी संदेश सार्वजनिक प्रभाव वाले कृत्य माने जा सकते हैं।

डिजिटल संचार पर संभावित प्रभाव
यह मामला न केवल कोली के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह डिजिटल युग में निजी संचार और सार्वजनिक अपराधों की सीमाओं को पुनः परिभाषित कर सकता है।

अगर सुप्रीम कोर्ट निजी संदेशों को IPC की धाराओं के दायरे से बाहर मानता है, तो यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नया आयाम देगा।
दूसरी ओर, इसे सार्वजनिक सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव के लिए खतरे के रूप में भी देखा जा सकता है।


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