Sun, 29 December 2024 11:15:35pm
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वितीय की परपोती, सुल्ताना बेगम की लाल किले पर कब्जे की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। बेगम ने खुद को कानूनी वारिस बताते हुए यह दावा किया था, लेकिन न्यायालय ने अपील में ढाई साल की देरी को माफ़ नहीं किया।
स्वामित्व का दावा और कानूनी प्रक्रिया
सुल्ताना बेगम ने दावा किया था कि वह बहादुर शाह जफर द्वितीय की वंशज हैं, इसलिए लाल किला उनकी संपत्ति है। उन्होंने अपनी खराब सेहत और बेटी की मृत्यु के कारण अपील में देरी का कारण बताया, लेकिन न्यायालय ने इसे अपर्याप्त मानते हुए याचिका खारिज कर दी।
न्यायालय का निर्णय
न्यायालय ने कहा कि 150 साल से अधिक समय बाद अदालत का दरवाजा खटखटाने में अत्यधिक देरी का कोई औचित्य नहीं है। इसलिए, याचिका को कई दशकों की अत्यधिक देरी के कारण खारिज कर दिया गया।
सुल्ताना बेगम का दावा
अधिवक्ता विवेक मोरे के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया गया था कि 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने परिवार को उनकी संपत्ति से वंचित कर दिया था। बादशाह को देश से निकाल दिया गया था और मुगलों से लाल किले का कब्जा जबरन छीन लिया गया था। याचिका में कहा गया कि बेगम लाल किले की मालिक हैं क्योंकि उन्हें यह अपने पूर्वज बहादुर शाह जफर द्वितीय से विरासत में मिला है।
न्यायालय की टिप्पणी
न्यायालय ने कहा, 'हमें यह स्पष्टीकरण अपर्याप्त लगता है, क्योंकि देरी ढाई साल से अधिक की है। याचिका को कई दशकों की अत्यधिक देरी के कारण भी खारिज कर दिया गया था। देरी माफ करने का आवेदन खारिज किया जाता है। नतीजतन, अपील भी खारिज कर दी जाती है। यह सीमाओं के कारण वर्जित है।'
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सुल्ताना बेगम की लाल किले पर स्वामित्व का दावा करने वाली याचिका को समयसीमा के कारण खारिज कर दिया। न्यायालय ने अत्यधिक देरी को देखते हुए याचिका को स्वीकार करने से इनकार किया।
Case Title: SULTANA BEGUM v. UNION OF INDIA & OTHERS
Source : LIve Law