Sun, 29 December 2024 06:13:45am
संसद में मंगलवार को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए संविधान (129वां संशोधन) बिल, 2024 पेश किया। इस बिल ने पूरे देश में एक नई बहस छेड़ दी है। जहां सत्ताधारी दल इसे लोकतंत्र और खर्च बचाने का उपाय बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ बता रहा है।
बिल की पेशकश और संसद का घटनाक्रम
मंगलवार को लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बहुचर्चित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल पेश किया। लोकसभा के एजेंडा के अनुसार, इस बिल को पेश करने के बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिरला से इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजने की सिफारिश की गई। इस समिति में विभिन्न पार्टियों के सांसद, उनकी संख्याबल के हिसाब से शामिल होंगे, जिसमें बीजेपी को अध्यक्ष पद मिलने की संभावना है।
बिल के साथ-साथ ‘यूनियन टेरिटरीज लॉ (संशोधन) बिल, 2024’ भी पेश किया गया, जिसमें जम्मू-कश्मीर, पुडुचेरी और दिल्ली के चुनावों को ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के साथ समन्वित करने की बात कही गई।
कांग्रेस का सख्त रुख: तीन लाइन का व्हिप जारी
बिल की संवेदनशीलता को देखते हुए, कांग्रेस पार्टी ने अपने लोकसभा सांसदों के लिए तीन लाइन का व्हिप जारी किया। कांग्रेस के सांसदों को मंगलवार को सदन में मौजूद रहने का निर्देश दिया गया। इससे पहले, कांग्रेस संसदीय दल कार्यालय में सुबह 10:30 बजे बैठक कर पार्टी की रणनीति पर चर्चा की गई।
कांग्रेस के लोकसभा डिप्टी लीडर गौरव गोगोई ने बिल पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह संविधान के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।
MoS (IC), Law and Justice @arjunrammeghwal
— SansadTV (@sansad_tv) December 17, 2024
introduces 2 bills in #LokSabha
The Constitution (129th Amendment) Bill, 2024.
The Union Territories Laws (Amendment) Bill, 2024.
@MLJ_GoI pic.twitter.com/fT03DH7KXe
विपक्ष का आरोप: चुनाव आयोग के अधिकारों में हस्तक्षेप
गौरव गोगोई ने आरोप लगाया कि यह बिल चुनाव आयोग को असाधारण शक्तियां प्रदान करता है, जिससे वह राष्ट्रपति को यह सिफारिश कर सकता है कि राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में चुनाव आगे बढ़ाए जाएं। उन्होंने कहा,
“ऐसी शक्तियां पहले कभी चुनाव आयोग को नहीं दी गईं। संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार, राष्ट्रपति केवल मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं। अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति राज्य में संवैधानिक संकट होने पर राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं।"
संविधान के बुनियादी ढांचे पर सवाल
गोगोई ने संविधान के ‘सेपरेशन ऑफ पावर्स’ के सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण लोकतंत्र की रीढ़ है। उन्होंने कहा कि यह बिल राष्ट्रपति को अधिक शक्तियां देता है और राज्यों की विधानसभाओं के अधिकारों को कमजोर करता है।
उन्होंने कहा कि लोकसभा और विधानसभाओं के पांच साल का कार्यकाल संविधान के अंतर्गत एक स्पष्ट प्रावधान है और इसे केवल नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर बदलना अनुचित है।
सरकार का तर्क: खर्च में कमी और व्यवस्था में सुधार
सरकार का तर्क है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से चुनावी खर्च में भारी कमी आएगी। चुनाव आयोग की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा चुनाव में 3,700 करोड़ रुपए का खर्च आया था। सरकार का मानना है कि बार-बार चुनाव कराने से प्रशासनिक व्यवस्था पर बोझ बढ़ता है।
हालांकि, गोगोई ने सरकार के इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा,
“संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी कर वित्तीय बचत का तर्क देना लोकतंत्र को कमजोर करने जैसा है।"
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के विपक्षी तर्क
बहस जारी, बिल संयुक्त समिति के पाले में
बिल पेश होने के बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजे जाने की संभावना है। विपक्ष इस बिल को संविधान के खिलाफ बता रहा है और गहन चर्चा की मांग कर रहा है। वहीं, सरकार इसे प्रशासनिक सुधार और वित्तीय बचत का माध्यम बता रही है।
Gaurav Gogoi gave bèlt treatment to BJP over ‘One Nation, One Election’
— Rohini Anand (@mrs_roh08) December 17, 2024
“This bill gives unlimited power to ECI to recommend any election at any time, removing 5 years term
This calls for DICTATORSHIP”
After looting lakhs of crores, BJP want to save ₹1000 crore pic.twitter.com/kN3fnlSOZ0