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सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी दोषियों की सजा, होस्टाइल गवाह पर दिया अहम फैसला



अजय त्यागी 2025-04-28 08:34:02 दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
सुप्रीम कोर्ट - Photo : Internet
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तमिलनाडु के कुख्यात 'कन्नागी-मुरुगेसन' ऑनर किलिंग मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ग्यारह दोषियों की सजा को बरकरार रखते हुए एक महत्वपूर्ण कानूनी व्याख्या दी है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि कोई गवाह मामले के कुछ, लेकिन सभी पहलुओं का समर्थन करता है, तो उसे स्वचालित रूप से 'होस्टाइल' (विरोधी) घोषित नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और पीके मिश्रा की पीठ ने ग्यारह दोषियों द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय के 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें उनकी आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया था। न्यायालय ने सबूत गढ़ने के आरोप में दो पुलिसकर्मियों की याचिकाओं को भी खारिज कर दिया।

'होस्टाइल' गवाह पर सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने तर्क दिया था कि कई गवाह वर्षों से 'होस्टाइल' हो गए क्योंकि उन्होंने पुलिस के सामने और कुछ मामलों में मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए अपने बयानों का खंडन किया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई गवाह उस पक्ष की कहानी का खंडन करता है जिसके लिए वह गवाह है, तो अंततः यह न्यायालय को तय करना होता है कि उस बयान को स्वीकार किया जाए या नहीं। न्यायालय ने कहा कि 'होस्टाइल विटनेस' शब्द का इस्तेमाल आपराधिक न्यायशास्त्र और अदालती कार्यवाही में आम है, लेकिन सिर्फ इसलिए कि एक गवाह ने मामले के कुछ, हालांकि सभी पहलुओं का समर्थन किया है, इसका स्वचालित रूप से यह मतलब नहीं है कि उस गवाह को 'होस्टाइल' घोषित किया जाना चाहिए।

धारा 154 और गवाह की विश्वसनीयता
कोर्ट ने आगे कहा कि एक पक्ष धारा 154 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत अपने ही गवाह से जिरह कर सकता है, भले ही उसे 'होस्टाइल' घोषित न किया गया हो। धारा 154 के तहत जिरह पर एकमात्र प्रतिबंध यह है कि जो पक्ष अपने ही गवाह से जिरह करना चाहता है, उसे न्यायालय की अनुमति लेनी होगी। 'होस्टाइल' घोषित होने या न होने के बावजूद, यह स्पष्ट है कि जिस गवाह से धारा 154 के तहत उस पक्ष द्वारा जिरह की गई है जिसने उसे बुलाया है, उसके पूरे बयान को खारिज नहीं किया जा सकता है। यह न्यायालय को देखना है कि ऐसे साक्ष्य से क्या निकाला जा सकता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि 'होस्टाइल' गवाह के बयान का कुछ हिस्सा अन्य विश्वसनीय साक्ष्यों से मेल खाता है, तो उस हिस्से को स्वीकार्य माना जा सकता है। साक्ष्य अधिनियम के तहत ऐसा कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है जो ऐसे साक्ष्य को पूरी तरह से खारिज करने का आदेश देता हो।

मुकदमे में देरी और गवाहों का पलटना
न्यायालय ने टिप्पणी की कि गवाहों के 'होस्टाइल' होने के कारणों में से एक अक्सर मुकदमे में होने वाली देरी है। इस मामले में, घटना 2003 में हुई थी, लेकिन सत्र न्यायालय में मामला 2010 में भेजा गया और आरोप 2017 में तय किए गए। अंततः, 18 साल की देरी के बाद 2021 में फैसला सुनाया गया। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने बचाव पक्ष के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि अभियोजन पक्ष के गवाह ज्यादातर पति के परिवार के सदस्य थे और इसलिए, वे 'हितबद्ध' गवाह थे।

भयानक ऑनर किलिंग का मामला
यह मामला एक युवा अंतरजातीय जोड़े, एस मुरुगेसन और डी कन्नागी की जघन्य हत्या से संबंधित है, जिन्हें लड़की के पिता और भाई ने जहर देकर मार डाला था। मुरुगेसन रसायन इंजीनियरिंग में स्नातक और दलित समुदाय से थे। कन्नागी वाणिज्य स्नातक और वन्नियार समुदाय से थीं। दोनों ने 5 मई 2003 को गुप्त रूप से शादी कर ली थी। जब कन्नागी के परिवार को इस शादी के बारे में पता चला, तो उन्होंने 7 जुलाई 2003 को दंपति को पकड़ लिया, जब वे शहर छोड़ने वाले थे, और उन्हें कीटनाशक (जहर) पिला दिया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मृत्यु हो गई। बाद में उनके शवों को जला दिया गया। इस हत्या को तमिलनाडु राज्य में "ऑनर किलिंग" के पहले मामलों में से एक माना जाता है। पुलिस की खराब जांच के बाद मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।

पीड़ित परिवार को मुआवजा
आज, सुप्रीम कोर्ट ने मुरुगेसन के पिता और सौतेली माँ को संयुक्त रूप से 5 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया।


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