Thu, 22 May 2025 09:27:11pm
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर को बॉम्बे हाईकोर्ट से एक महत्वपूर्ण कानूनी राहत मिली है। अदालत ने वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दर्ज किए गए मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में उन्हें जमानत प्रदान कर दी है। यह मामला 2017 में दर्ज हुई एक जबरन वसूली की शिकायत पर आधारित था।
बचाव पक्ष की दलीलें हुईं स्वीकार
इकबाल कासकर के खिलाफ यह अंतिम लंबित मामला था, और अब उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के बाद, उनके कारावास से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। यह घटनाक्रम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पहले 26 अप्रैल को कासकर को जबरन वसूली के एक अन्य मामले में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत एक विशेष अदालत ने बरी कर दिया था।
ईडी की कमजोर पैरवी का दावा
कासकर के वकील, एडव्होकेट ताबिश मुमान ने अदालत में तर्क दिया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा अभी तक किसी भी गवाह से अदालत में कोई पूछताछ नहीं की गई है। उन्होंने यह भी महत्वपूर्ण दावा किया कि कथित वित्तीय अनियमितताओं की कुल राशि एक करोड़ रुपये से भी कम है, जिसके कारण यह अपराध धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 45 के तहत जमानत योग्य है। हालांकि, विशेष पीएमएलए अदालत ने 26 जून 2024 को उनकी इस जमानत याचिका को अस्वीकार कर दिया था, जिसे बाद में उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
बिना सुनवाई के हिरासत अधिकारों का उल्लंघन
उच्च न्यायालय में इकबाल कासकर की ओर से यह महत्वपूर्ण तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि वह पहले ही एक ऐसे अपराध के लिए तीन साल की हिरासत में बिता चुके हैं, जिसके लिए अधिकतम तीन साल की ही सजा का प्रावधान है। उनके वकीलों ने जोर देकर कहा कि बिना किसी ठोस सुनवाई के उन्हें लगातार जेल में रखना उनके मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
सबूत पेश करने में ईडी विफल
अदालत में यह भी दलील दी गई कि ईडी इकबाल कासकर को जबरन वसूली से प्राप्त नकदी, किसी भी विवादित फ्लैट, या कथित आपराधिक साजिश से जोड़ने वाला कोई भी ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश करने में पूरी तरह से विफल रही है। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि जांच एजेंसी कासकर के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों को साबित करने में नाकाम रही है, जिसके परिणामस्वरूप विशेष अदालत ने पहले उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था।
उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला
न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए इस महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत पर जोर दिया कि जब अभियोजन पक्ष मूल अपराध में आरोपी के अपराध को स्थापित करने में विफल रहता है, तो आरोपी को पीएमएलए के तहत दर्ज अपराध में भी जमानत का हकदार होना चाहिए। अदालत ने इकबाल कासकर को जमानत मंजूर करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि अभियोजन पक्ष को अंततः अदालत में अपराध को निर्विवाद रूप से साबित करना होगा।
Iqbal Kaskar | खंडणीशी संबंधित आर्थिक गैरव्यवहाराचे प्रकरण : इक्बाल कासकरला उच्च न्यायालयाकडून जामीन#iqbalkaskar #highcourt #Zee24Taas #Marathinews pic.twitter.com/r1jAWJWyja
— ZEE २४ तास (@zee24taasnews) May 4, 2025
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