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अतीत के घाव, वर्तमान का गौरव: भारत-पाक तनाव के बीच बीकानेर के शरणार्थियों का अटूट विश्वास



अजय त्यागी 2025-05-11 04:43:04 स्थानीय

Pakistani migrants of Poogal village (ETV Bharat)
Pakistani migrants of Poogal village (ETV Bharat)
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भारत और पाकिस्तान के बीच फिलहाल युद्ध विराम हो चुका है। लेकिन अभी भी तनाव की स्थिति बनी हुई है। इस बीच बात करते हैं राजस्थान के बीकानेर जिले के पूगल गांव की। यह गांव उन कई शरणार्थियों का घर है जिन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद पाकिस्तान से भागकर भारत में शरण ली थी। इन लोगों ने 1977-78 में घोषित पुनर्वास पैकेज के तहत भारत में अपना नया जीवन शुरू किया और बाद में उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की गई। आज, इन शरणार्थियों की आवाजें 'ऑपरेशन सिंदूर' के समर्थन में गूंजी, जो उनकी देशभक्ति और भारत के प्रति अटूट विश्वास को दर्शाती हैं।

तेजमल सिंह का 'ऑपरेशन सिंदूर' को समर्थन

ईटीवी भारत की एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान से भारत आए तेजमल सिंह, जो उस समय केवल 9 वर्ष के थे, ने "ऑपरेशन सिंदूर" की सराहना करते हुए कहा कि यह पाकिस्तान के बुरे कृत्यों का मुंहतोड़ जवाब है। उन्होंने कहा, "पाकिस्तान ने कभी भी अपने नागरिकों के साथ न्याय नहीं किया, इसलिए भारत की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाना आवश्यक है। 'ऑपरेशन सिंदूर' वही है जिसका पाकिस्तान हकदार है। भारत में हमें सम्मान, सुरक्षा मिली और अब यह हमारा अपना देश है।" उनकी यह टिप्पणी उनके गहरे विश्वास और भारत के प्रति कृतज्ञता को दर्शाती है।

परिवार की आपबीती और भारत में सुरक्षा का अनुभव

रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य प्रवासी, जो केवल दो महीने के थे जब उनका परिवार उन्हें भारत लाया था, ने बताया कि उन्होंने अपने बड़ों से पाकिस्तान में झेली गई भयानक यातनाओं की कहानियाँ सुनी हैं। उन्होंने कहा, "मैंने सुना है कि सरकार, सेना और प्रशासन लगातार उन पर दबाव डालते थे। लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी कभी अनुभव नहीं हुआ। हम यहां बहुत सुरक्षित हैं और शांति से रहते हैं।" यह कथन भारत में उन्हें मिली शांति और सुरक्षा की भावना को व्यक्त करता है।

धार्मिक उत्पीड़न की यादें 

रिपोर्ट के अनुसार, भीख सिंह, एक अन्य पाकिस्तानी प्रवासी, जो 13 साल की उम्र में भारत आए थे, ने कहा कि उन्हें आज भी याद है कि कैसे उन्हें धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता था। उन्होंने कहा, "मैं 1971 के युद्ध के समय कक्षा 8 में पढ़ रहा था। जब मेरे परिवार को भारत आने का मौका मिला तो हमने तुरंत इस देश में जाने का फैसला कर लिया। पाकिस्तान में, हमें धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जाता था। इसलिए पहले मौके पर, हमने सब कुछ पीछे छोड़ दिया और भारत आ गए।" उनकी यह याद पाकिस्तान में उनके दर्दनाक अतीत को उजागर करती है।

विस्थापितों का पुनर्वास और देश के लिए समर्पण 

रिपोर्ट के अनुसार, भीमदान देवल ने बताया कि आज भी कई विस्थापित पाकिस्तानी राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे हुए हैं। उन्होंने कहा, "भारत आने के बाद, उन्होंने कई साल शरणार्थी शिविरों में बिताए, लेकिन अब वे सरकारी नौकरियों में कार्यरत हैं और अपना व्यवसाय चला रहे हैं।" उन्होंने यह भी कहा कि उनके जैसे प्रवासी देश को उनकी मदद की जरूरत होने पर सीमा पर जाकर सेना का समर्थन करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत ने न केवल उन्हें घर दिया है, बल्कि सुरक्षा और सम्मान भी दिया है जिसकी उन्हें पाकिस्तान में कमी महसूस होती थी, इसलिए वे हमेशा इस देश की रक्षा के लिए तैयार हैं।

बहरहाल, बीकानेर के पूगल गांव में बसे ये शरणार्थी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के इस माहौल में भी अपनी देशभक्ति और अटूट विश्वास का परिचय दे रहे हैं। 1971 के युद्ध की पीड़ा और भारत में मिले सम्मान और सुरक्षा की भावना आज भी उनके दिलों में जीवित है। 'ऑपरेशन सिंदूर' के प्रति उनका समर्थन न केवल उनकी कृतज्ञता को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि भारत ने उन्हें न केवल आश्रय दिया है, बल्कि एक ऐसा घर दिया है जिसे वे अपना मानते हैं और जिसकी रक्षा के लिए वे हर संभव प्रयास करने को तैयार हैं।


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