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बीकानेर में साहित्य की तीन धाराओं का भव्य लोकार्पण: ज्योति वधवा की कृतियों से आलोकित हुआ राजमहल



अजय त्यागी 2025-05-20 07:31:37 स्थानीय

ज्योति वधवा की कृतियों का भव्य लोकार्पण
ज्योति वधवा की कृतियों का भव्य लोकार्पण
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बीकानेर के साहित्यिक गलियारों में एक ऐसा अद्भुत समागम हुआ, जहाँ कल्पना की तीन अलग-अलग धाराएं एक साथ प्रवाहित हुईं। नवकिरण सृजन मंच के तत्वावधान में आयोजित एक गरिमामय समारोह में बहुआयामी साहित्यकार ज्योति वधवा रंजना की तीन उत्कृष्ट कृतियों का लोकार्पण हुआ। यह साहित्यिक उत्सव न केवल पुस्तकों के अनावरण का साक्षी बना, बल्कि मातृ शक्ति, साहित्य सृजन और सामाजिक चेतना जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चिंतन का भी मंच बना। होटल राजमहल में सजे इस साहित्यिक दरबार में शब्दों की शक्ति और भावनाओं की गहराई का अनुपम अनुभव किया गया।

मातृ शक्ति का त्रिविध रूप:

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात संत स्वामी विमर्शानन्द गिरिजी ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में मातृ शक्ति के तीन महत्वपूर्ण रूपों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि माँ ज्योति के रूप में घर, परिवार और समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाती है, अंधकार को दूर कर जागृति लाती है। जब समाज या परिवार पर कोई संकट आता है, तो वही माँ ज्वाला का रूप धारण कर अपनी असीम शक्ति का परिचय देती है। स्वामी विमर्शानन्द गिरिजी ने यह भी कहा कि ज्योति वधवा की इन तीनों पुस्तकों में मातृ शक्ति के ये तीनों रूप किसी न किसी भाव और अभिव्यक्ति में स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं, जो उनकी रचनाओं को एक विशेष गहराई और महत्व प्रदान करते हैं।

साहित्य: एक अनवरत सृजन प्रक्रिया:

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सुप्रसिद्ध कवि एवं कथाकार राजेंद्र जोशी ने साहित्य सृजन की निरंतर चलने वाली प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साहित्य कभी थमता नहीं, बल्कि यह समाज और समय के साथ लगातार विकसित होता रहता है। राजेंद्र जोशी ने ज्योति वधवा के साहित्य में प्रेम और सद्भावना की गहरी अभिव्यक्ति को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि उनकी रचनाएं मानवीय मूल्यों और सकारात्मक भावनाओं से ओतप्रोत हैं, जो पाठकों के मन में एक गहरा प्रभाव छोड़ती हैं।

रचनाकार का धर्म: प्रश्न और समाधान:

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि डॉ. मेघना शर्मा ने अपने उद्बोधन में रचनाकार के महत्वपूर्ण धर्म पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि एक सच्चा रचनाकार केवल प्रश्नों को उठाता ही नहीं, बल्कि उनका समाधान खोजने की दिशा में भी प्रयास करता है। डॉ. शर्मा ने ज्योति वधवा की पुस्तकों में इन दोनों भावों की उपस्थिति को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि उनकी रचनाएं समाज में व्याप्त जिज्ञासाओं को शांत करने और नई सोच को प्रेरित करने का कार्य करती हैं।

सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार:

विशिष्ट अतिथि इंजी. आशा शर्मा ने ज्योति वधवा की रचनाओं के एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक विद्रूपता या सामाजिक विसंगतियां ज्योति वधवा की रचनाओं का एक अभिन्न अंग हैं। उनकी लेखनी समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ एक सकारात्मक जन चेतना जागृत करने का सशक्त माध्यम बनती है। इंजी. आशा शर्मा ने उनके इस प्रयास की सराहना की और कहा कि साहित्य समाज को सही दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

साहित्यकार: समाज का दर्पण:

इस अवसर पर डॉक्टर मदन सैनी ने साहित्य और साहित्यकार के अटूट संबंध पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साहित्यकार वास्तव में समाज का आईना होता है। वह अपने आसपास के परिवेश में जो कुछ भी महसूस करता है, उसे अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज के सामने प्रस्तुत करता है, जिससे लोगों को वास्तविकता का ज्ञान होता है और वे समाज की अच्छाइयों और बुराइयों से अवगत होते हैं।

ज्योति वधवा: एक बहुआयामी प्रतिभा:

कार्यक्रम के प्रारंभ में, नवकिरण सृजन मंच के अध्यक्ष डॉ. अजय जोशी ने ज्योति वधवा को एक बहुआयामी साहित्यकार के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि उनकी लोकार्पित तीनों पुस्तकें अलग-अलग साहित्यिक विधाओं से संबंधित हैं - एक कविता संग्रह, दूसरा कहानी संग्रह और तीसरा लघुकथा संग्रह, जो उनकी साहित्यिक विविधता और गहराई को दर्शाता है।

'जीवन के रंग लघुकथाओं के संग': अनुभवों की ताजगी:

कार्यक्रम समन्वयक कवि एवं कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने ज्योति वधवा की लघुकथा संग्रह 'जीवन के रंग लघुकथाओं के संग' पर अपना पत्र वाचन प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि इस संग्रह की अधिकांश लघुकथाएं इस मायने में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि उनमें अनुभव की ताजगी और अभिव्यक्ति की सच्ची भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इन लघुकथाओं में कहीं परिस्थितियों से जूझने की अटूट हिम्मत है, तो कहीं टूटता हुआ मनुष्य भी अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहा है। रिक्त होती संवेदनाएं हों या गरीबी की मार से त्रस्त व्यक्ति, समय की तेज गति के साथ आगे बढ़ता इंसान हो या बदलाव को स्वीकार न कर पाने के कारण पीछे छूटता हुआ व्यक्ति - ये लघुकथाएं हमारे समाज की एक संपूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करती हैं। इन लघुकथाओं को पढ़ते हुए यह अहसास होता है कि हम एक ऐसे रचना संसार से गुजर रहे हैं जो ईमानदारी और मासूमियत से भरा है, जिसमें जीवन के लगभग सभी रूप, रंग और गंध महसूस किए जा सकते हैं। इन लघुकथाओं में एक प्रबल इच्छाशक्ति दिखाई देती है - एक बेहतर इंसान बनने की तीव्र ललक।

'काश मन परिन्दा होता': समय और समाज की अंतर्ध्वनि:

कविता संग्रह 'काश मन परिन्दा होता' पर अपना पत्र वाचन करते हुए डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा कि कविता केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि यह अपने समय और समाज की आंतरिक आवाज भी होती है। एक कवि अपने समय की सच्चाई, अपने आसपास के परिवेश और मानवीय चेतना को अपने शब्दों के माध्यम से जीवंत करता है। उन्होंने ज्योति वधवा की कविताओं में इन तत्वों की उपस्थिति को महत्वपूर्ण बताया।

कहानी संग्रह: सामाजिक विसंगतियों का साहित्यिक चित्रण:

डॉ. कृष्णा आचार्य ने कहानी संग्रह पर अपना पत्र वाचन प्रस्तुत करते हुए कहा कि ज्योति वधवा की कहानियां घर, परिवार और समाज में व्याप्त विसंगतियों और आसपास के माहौल से उत्पन्न होने वाली घटनाओं की साहित्यिक अभिव्यक्ति हैं। उनकी कहानियां समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं और पाठकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।

लेखिका ज्योति वधवा रंजना का परिचय इंजी. गिरिराज पारीक और जवाहर जोशी ने दिया। कार्यक्रम का कुशल संचालन हास्य व्यंग्य कवि बाबू बमचकारी ने अपनी मनोरंजक शैली में किया। आभार ज्ञापन तुषार वधवा ने किया। कार्यक्रम में नवकिरण सृजन मंच से भारती, यामिनी जोशी, शब्दरंग से सौरभ और प्रेरणा प्रतिष्ठान से प्रेमनारायण व्यास ने ज्योति वधवा का सम्मान किया।

इस साहित्यिक समारोह में जगदीश वधवा, रवि पुरोहित, बी.एल. नवीन, कासिम बीकानेरी, गिरिराज पारीक, संजय श्रीमाली, एडवोकेट इसरार अहमद कादरी, मुनीन्द्र अग्निहोत्री, राजश्री भाटी, मोनिका गौड़, महेश उपाध्याय, नीतू जोशी, सौरभ स्वर्णकार, भगवती पारीक, कमल रंगा, सुनील शादी सहित साहित्य और संगीत जगत से जुड़े अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, जिन्होंने इस साहित्यिक उत्सव को और भी यादगार बना दिया।