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परिवार में बेहतर संवाद को बनाएं दैनिक दिनचर्या का हिस्सा



अजय त्यागी 2024-02-23 11:08:13 संपादकीय

सांकेतिक फोटो - सोशल मीडिया
सांकेतिक फोटो - सोशल मीडिया

युवाओं में लगातार बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर सबसे महत्वपूर्ण बात है परिवारों में संवाद की कमीं। आत्महत्या के अधिकांश मामलों में बच्चों और अभिभावकों में संवाद की कमीं इसका मुख्य कारण है। अक्सर यह देखने में आया है कि माँ-बाप बच्चों के साथ केवल पढ़ने, ज्यादा मार्क्स लाने और दुसरे बच्चों के साथ तुलना करने जैसे संवाद ही करते हैं। 

युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति को रोकने के लिए जरूरी है कि माँ-बाप बच्चों को समझाएं कि बेशक अच्छे मार्क्स बच्चों की आगे बढ़ने में मदद करते हैं लेकिन, केवल अच्छे मार्क्स ही सफलता नहीं है। उन्हें अपने बच्चों को यह भी बताना चाहिए कि पढ़ाई के आलावा भी वह अपनी ज़िन्दगी में सफल हो सकते हैं। देश में लाखों व्यवसाई ऐसे हैं जिन्होंने कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद ना सिर्फ सफलता प्राप्त की है बल्कि अनेक दूसरे युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। 

प्रतिस्पर्धा तो हर रास्ते पर मिलेगी लेकिन, उनका सामना करने के लिए अपने बच्चों को तैयार करने की जिम्मेदारी माँ-बाप की है और उसका एक मात्र उपाय है बेहतर संवाद। जो प्रत्येक परिवार में दैनिक दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। प्रत्येक विषय पर यदि माँ-बाप अपने बच्चों से संवाद करेंगे और उन्हें जीवन में अच्छे मार्क्स के बजाए सफलता के लिए प्रेरित करेंगे तो इस समस्या से निजात पाया जाना संभव हो सकता है।

हर कोई डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनता। इसलिए बच्चे की रूचि जानना भी बेहद जरूरी है। अक्सर देखा जाता है कि माँ-बाप अपने सपनों को बच्चों पर हावी कर देते हैं और उन्हें वह बनाना चाहते हैं जो उनकी खुद कि इच्छा है। जबकि कोई भी, बच्चा हो या बड़ा, केवल उस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकता है, जिसमे उसकी स्वयं की रूचि हो। इसलिए उनकी रूचि को जानना बेहद आवश्यक है।

कई, बार यह भी देखा गया है कि अनेक युवा आत्महत्या जैसे कदम तो नहीं उठाते लेकिन अवसाद का शिकार हो जाते हैं। उसके पीछे भी मुख्य कारण संवाद कि कमीं है। माँ-बाप द्वारा बार-बार अच्छे मार्क्स की बातों से, बच्चों में ऐसी मानसिकता विकसित हो जाती है कि जैसे बेहतर मार्क्स लाते ही उनके लिए रेड कारपेट बिछा मिलेगा जो उन्हें सफलता की ऊंचाई पर बिठा देगा। जबकि वास्तविकता इस से बिलकुल उलट है। ज़िन्दगी की असली प्रतिस्पर्धा तो इसके बाद शुरू होती है। यह समझना और बच्चों को समझाना भी जरूरी है कि सारे 90 प्रतिशत मार्क्स वाले बच्चे सफल हों यह भी जरूरी नहीं है। 

यदि हम अपने आस-पास भी गौर से देखेंगे तो ना जाने कितने कम पढ़े-लिखे सफल मिल जाएँगे, जबकि ऐसे भी अनेक मिल जाएँगे जो पढ़े लिखे तो ज्यादा हैं, मार्क्स भी उनके अच्छे हैं, लेकिन सफल होने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। 

इसलिए बेहतर है कि केवल माँ-बाप बनने के बजाए अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखें। प्रतिदिन अपने बच्चों के साथ संवाद करें और हर विषय पर संवाद करें। - अजय त्यागी 



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