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बंद होने की कगार पर RGHS, कर्मचारी हो रहे परेशान, इलाज, दवा और बकाया बिल के लिए दर-दर भटक रहे



अजय त्यागी 2024-04-06 12:47:22 समीक्षा

प्रतीकात्मक फोटो : Internet
प्रतीकात्मक फोटो : Internet

स्वास्थ्य से जुड़ा मामला था या लोकसभा चुनाव की मजबूरी जिसके चलते गहलोत सरकार में लागू की गई RGHS योजना को नई भजनलाल सरकार ने भी जारी रखा। लेकिन अफसरों की मनमर्जी से अब यह योजना लगभग बंद होने की स्थिति में ही आ गई है। हालात यह है कि केमिस्ट बकाया बिलों के भुगतान का हवाला देकर कर्मचारियों को दवा नहीं दे रहे और अस्पताल आधा-अधूरा इलाज कर टरका रहे हैं। राजस्थान के 8 लाख से ज्यादा कर्मचारी और करीब 4 लाख पेंशनर्स इस योजना से जुड़े हुए हैं।

3 महीने से ज्यादा की पेंडेंसी

गहलोत सरकार के दौरान राईट टू हेल्थ के विरोध में की गई हड़ताल के बाद से यह योजना लगभग खटाई में पड़ चुकी है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक RGHS में करीब 3 महीने से ज्यादा समय के बिलों की पेंडेंसी चल रही है। केमिस्ट एसोसिएशन द्वारा इसके विरोध में फरवरी में 2 दिन दवा सप्लाई बंद भी रखी गई थी। 

राजस्थान में RGHS के तहत 3500 दुकानें पंजीकृत हैं, लेकिन समय पर भुगतान नहीं होने से ज्यादातर केमिस्ट अब इस योजना में दवा सप्लाई नहीं कर रहे हैं। इस संबंध में एसएमएस अस्पताल और इसके आसपास के केमिस्टों ने तो RGHS के बोर्ड तक अपनी दुकानों से हटा लिए हैं। 

योजना में 21 दिन में केमिस्ट को भुगतान किए जाने का प्रावधान रखा गया था, लेकिन इसमें महीनों का समय लग रहा है। योजना से जुड़े अफसर न तो इसमें फर्जी बिलों के भुगतान रोक पाए और न ही जरूरत मंद कर्मचारियों के लिए योजना सही ढंग से चला पा रहे हैं। यहाँ बड़ा सवाल यह उठता है कि इसमें सरकारी कर्मचारी अथवा पेंशनर्स का क्या दोष है? समय पर सरकार योजना का पैसा उनके वेतन अथवा पेंशन से काट रही है तो समय पर दवा और इलाज क्यों नहीं दिया जा रहा?

बिलों के भुगतान में देरी के लिए कौन जिम्मेदार

प्राप्त जानकारी के अनुसार योजना में मुख्यत: एसआईपीएफ/ आरएसएचए एवं वित्त विभाग( मार्गोपाय) विभाग आते हैं। इसमें एसआईपीएफ/ आरएसएचए विभाग बिल वेरिफाइ करके वित्त विभाग( मार्गोपाय) विभाग को भेजते हैं। देखने में आया है कि पहले बिल प्रेषित करने में ही समय लग जाता है। इससे बाद वित्त विभाग( मार्गोपाय) के अफसर भुगतान रोक कर बैठ जाते हैं। 

कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सरकार ने एक रुपए से 3 लाख करोड़ रुपए तक के भुगतान की प्रणाली नियम विरूद्ध जाकर सेंट्रलाइज कर रखी है। एक व्यक्ति ने भुगतान के सारे अधिकार ले रखे हैं, जिससे विवाद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। भुगतान प्रणाली सेंट्रलाइज होने के बाद फर्जी भुगातन, दौहरे भुगतान, अधिक भुगतान, मृतकों के खाते में भुगतान जैसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं। दूसरी तरफ जहां कर्मचारियों को जरूरत है वहां भुगतान करने में मनमर्जी चलाई जा रही है। आरोप यह भी लगाए जाते हैं कि बिलों के भुगतान के लिए वित्त विभाग के चक्कर नहीं लगाओ तब तक पैसा खाते में नहीं आता।

कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। पैसा कटवाने के बाद भी न तो उसे समय पर दवा मिल पा रही है और न ही अस्पतालों में इलाज। जब कर्मचारी के खाते से समय पर पैसा कट जाता है तो बिलों के भुगतान के विवाद का नुकसान कर्मचारी को अपनी सेहत से क्यूं उठाना पड़ रहा है -सीताराम जाट- अध्यक्ष, सचिवालय कर्मचारी संघ

दवा मिलने में परेशानी इसलिए आ रही है क्योंकि दवा विक्रेताओं के भुगतान नहीं हो रहे। पहले भी विवाद हुआ था तो हमसे कहा गया था कि मार्च तक सारी पेंडेंसी खत्म कर दी जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब छोटे कमेस्टि कब तक रकम फंसाकर बैठ सकते हैं -मनोज सक्सेना, प्रदेशाध्यक्ष, राजस्थान राज्य मंत्रालयिक कर्मचारी महासंघ



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