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भोजशाला में ASI सर्वे के 18वें दिन अकलकुंय्या की हुई नपाई, 14 गड्डे चिह्नित, सात जगह चल रहा उत्खनन



अजय त्यागी 2024-04-08 04:07:49 मध्य प्रदेश

भोजशाला परिसर - File Photo : Internet
भोजशाला परिसर - File Photo : Internet

भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन धार की भोजशाला में ASI सर्वेक्षण का काम तेजी से चल रहा है। भोजशाला में आज सर्वे का 18वां दिन है। आज एएसआई के 19 अधिकारी और 33 मजदूरों ने भोजशाला में प्रवेश किया। ASI की टीम सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर भोजशाला पहुंची। टीम ने भोजशाला में 14 गड्डे चिह्नित किये हैं। लगभग 7 जगह उत्खनन चल रहा है। भोजशाला से तीन हजार से ज्यादा तगारी मिट्टी भी बाहर फेंकी गई। 

कल सर्वे टीम ने भोजशाला के अंदर बाहर से भी मिट्टी हटाई। वहीं, भोजशाला में अंदर पत्थरों की ब्रसिंग की गई और उसके आसपास से मिट्टी हटाकर फोटो लिए गए। बड़ा अपडेट ये है कि भोजशाला परिसर के पास स्थित अकलकुंय्या की भी नपाई हुई। वहीं भोजशाला में स्थित हवनकुंड से मिट्टी हटाई गई थी। 

भोज उत्सव समिति के संरक्षक गोपाल शर्मा ने मीडिया से चर्चा में बताया कि आज सर्वे का 18वां दिन है और कार्य प्रगति पर है। समय अवधि में हम निर्णायक भूमिका में पहुंचने वाले हैं। जिन उद्देश्यों को लेकर यह पिटीशन दायर हुई थी वो सार्थक सिद्ध होगी। कल अकलकुंय्या का भी सर्वे हुआ है। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से यह अकलकुंय्या राजा भोज द्वारा स्थापित सरस्वती कूप है। 

उन्होंने कहा कि राजा भोज द्वारा लिखित चारु चर्या नामक पुस्तक में इसका उल्लेख है कि आर्याव्रत में सात स्थानों पर आह्वान करके सरस्वती कूप स्थापित किए गए थे, जहां-जहां गुरुकुल होते थे। विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन और बुद्धि तीक्ष्ण हो इसके लिए उन्हें इस जल का सेवन करवाया जाता था, जिससे उनकी बुद्धि तीक्ष्ण होती थी। ज्ञान बढ़ता था, याददाश्त अच्छी रहती थी।

पातालगंगा सरस्वती रूप के नाम से इसका संबोधन था

उनके अनुसार जो पुराने लोग हैं उन्होंने देखा है कि जो सरस्वती कूप वर्तमान स्थिति में हैं, कैद में हैं। इसका रास्ता दो गुंबजों के बीच में से जाता था। 7 फीट नीचे 14 कोणीय अकलकुंय्या बनी हुई है, इसको वर्तमान में अकलकुंय्या कहा जाता है। वास्तविकता में पातालगंगा सरस्वती रूप के नाम से इसका संबोधन था। सीढ़ियों के द्वारा इसमें उतरते थे। दक्षिण की ओर से इसमें प्रवेश करते थे। तो उत्तर की दीवार पर गणेश जी की आकृति बनी हुई है। 

उन्होंने कहा कि इसका उल्लेख हरी भाऊ वाकणकर ने अपनी पुस्तक में किया था। वह सरस्वती की खोज में निकले थे और जहां-जहां मां सरस्वती का आह्वान किया गया था, वहां वह पहुंचे थे वह भोजशाला भी आए थे और उन्होंने अकलकुंय्या में छलांग मारी थी और तल में से एक ताम्रपत्र जो राजा भोज द्वारा लिखित था और एक पत्थर जो सिर्फ सरस्वती नदी में ही मिलता है वह निकाल कर ले गए थे। 

ऐसे दिव्य स्थान पूरे आर्यावर्त में सात स्थानों पर थे। वर्तमान में यह इलाहाबाद में किले में, दूसरा नालंदा विश्वविद्यालय में और तीसरा भोजशाला में सरस्वती कूप है, जो अन्य चार और हैं वह पूर्व के आर्यावर्त में है। आप जब वाकणकर जी की पुस्तक पढेंगे तो उसमें सारी जानकारी मिल जाएगी।  

मंदिर हो तो हमें दो और मस्जिद हो तो उन्हे दे दो

सर्वे रोकने को लेकर कोर्ट में आवेदन लगाने को लेकर गोपाल शर्मा ने कहा कि यह उनका दुराग्रह है। यह उनकी मानसिकता है, जिसका माल नहीं होता वह ही रोक लगाता है। हम तो खुद सर्वे के लिए गए कि अगर मंदिर है तो हमको दे दिया जाए और मस्जिद है तो उनको दे दो। निश्चित रूप से सच सामने आएगा, जैसे अयोध्या, मथुरा, काशी का सच सामने आया है। भोजशाला का टाइटल भी बदलेगा। भोजशाला शारदा सदन और सरस्वती कंठाभरण के नाम से जानी जाती थी। ये अपने गौरव को इस सर्वे के बाद पुनः प्राप्त करेगी।



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