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नवरात्री विशेष - माँ ब्रह्मचारिणी के मंदिर में होती हैं सभी मनोकामनाएँ पूरी



अजय त्यागी 2024-04-10 10:09:32 आध्यात्मिक

मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर
मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर

हिन्दू धर्म में मां दुर्गा सबसे पूजनीय देवी में से एक हैं। भक्तों के लिए मां दुर्गा कष्ट हरणी, पाप नाशनी आदि कई शक्तियों के रूप में पूजनीय हैं। नवरात्रि के पावन दिनों में भक्त मां दुर्गा के दर्शन के लिए फेमस और प्राचीन मंदिरों में भी दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। 

आज हम आपको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से दर्शन करने के लिए जाता है उनकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

जी हां, जिस मंदिर के बारे में हम बात कर रहे हैं उस पवित्र मंदिर का नाम है मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा का मन्दिर। यह पवित्र और प्रसिद्ध मंदिर किसी और स्थान नहीं बल्कि भारत की पवित्र नगरी काशी यानी वाराणसी में है। मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी ही बताया जाता है।

यह है मान्यता 

माँ ब्रह्मचारिणी मंदिर की पौराणिक कथा बेहद ही रोचक है। उनके बारे में कहा जाता है कि वो हिमालय पर्वत और मैना की पुत्री थी। भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए उन्होंने अभूतपूर्व तपस्या की थी। माँ ब्रह्मचारिणी के बारे में यह भी कहा जाता है कि कई वर्षों तक तपस्या करने के कारण उनका शरीर क्षीण हो गया था और इस तपस्या को देवताओं और ऋषि-मुनियों ने भी अद्वितीय बताया था। एक अन्य पौराणिक कथा है कि उन्होंने वर्षों तक फल-फूल खाकर और जमीन पर रहकर घोर तपस्या की थी।

यहाँ है मंदिर 

काशी के गंगा किनारे बालाजी घाट पर स्थित मां ब्रह्मचारिणी दुर्गा मंदिर में भक्तों की भीड़ सुबह से ही लग जाती हैं। खासकर नवरात्रि के दिनों में भक्त लोग रात्री 2 बजे से ही दर्शन के लिए प्रसाद लेकर लाइन में लग जाते हैं। नवरात्रि के दिनों में यहां कई कार्यक्रम का भी आयोजन होता है। कहा जाता है कि काशी की इस मंदिर में जो भी भक्त सच्चे मन से मां की पूजा करते हैं तो उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

यह है मूर्ती का स्वरुप 

इस मंदिर में ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बायें हाथ में कमंडल शोभित है। ऐसी मान्‍यता है कि इस मंदिर में देवी की आराधना करने से साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होती है। यहां माता के दर्शन करने वालों को यश और कीर्ति का आर्शिवाद भी प्राप्त होता है।

यह है पौराणिक कथा

विविध स्रोतों में प्रकारांतर से शैलपुत्री के तपस्विनी रूप की ही कथा मिलती है। जिसे किञ्चित विस्तार में समझते हैं- 

रामचरितमानस के बालकाण्ड में गोस्वामी तुलसीदास जी दोहे-चौपाई के माध्यम से लिखते हैं कि हिमालय की पुत्री पार्वती ने नारदजी के उपदेश से पति के रूप में शिवजी को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। 

एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बेल के पत्ते खाए और शिव की आराधना करती रहीं। बाद में पार्वतीजी ने बेल के पत्ते भी खाना छोड़ दिया । कई हजार वर्षों तक निर्जला और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।

देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा कि हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही सम्भव है। तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी और  शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। कालिदास कुमासम्भवम् में लिखते हैं कि पार्वती की परीक्षा शिव ने स्वयं ली। वे बटुक के भेष में पार्वती से शिव को बैरागी, बौराहा, साँप-बिच्छू पहनने वाला, चिता की अपवित्र राख को शरीर पर मलने वाला है, ऐसा कहे। ऐसे में पार्वती क्रोधित हो गईं तभी भेष बदले हुए शिव अपने असली रूप में आ गए। 

देवी ब्रह्मचारिणी अपने निर्णय पर दृढ़ रहने की शक्ति देती हैं। उद्देश्य के प्रति निष्ठा रखना सिखाती हैं। बाधाओं के सामने डटे रहना सिखाती हैं। ब्रह्मचारिणी की उपासना से साधक अपने भीतर की स्थिरता को पा जाता है। इस रूप में शक्ति को जो उमा नाम मिला है वह माता मेना के द्वारा तपस्या के लिए मना करने पर मिला है। उ मतलब वह सब तपस्या आदि…. मा मतलब न करो……..। इसी तरह अपर्णा नाम भी संकल्प के प्रति निष्ठा में अर्जित हुआ है। 

यह है पौराणिक स्वरूप

विद्यार्थी जीवन कष्ट का होता है इसलिए ब्रह्मचारिणी नंगे पैर रहती हैं। इन्होंने संसार का नहीं स्व की इच्छा का चयन किया है। ये नारंगी और सफेद रंग की साड़ी पहनती हैं। इसमें नारंगी ब्रह्म तेज और सफेद उज्ज्वलता-पवित्रता का सूचक है। ये दृढ़ निश्चय, अपार सहनशीलता वाली हैं तभी दृढ़ता की प्रेरणा देती हैं। ब्रह्मचारिणी अटूट धैर्य का आशीर्वाद देती हैं। ये मंगल ग्रह पर शासन करती हैं। मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से मुक्ति  ब्रह्मचारिणी ही दिलाती हैं। इनके हाथ में माला, साधना को सूचित करती है और कमण्डल पवित्रता की धारणा।

माता ब्रह्मचारिणी

नवरात्रि व्रत-पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवती पार्वती ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। कहते हैं माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। ब्रह्मचारिणी के रूप का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। 

श्लोक

दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु। 

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मंदिर कैसे पहुंचे?

भारत के किसी भी शहर से आसानी से मां ब्रह्मचारिणी मंदिर पहुंचा जा सकता है। इसके लिए मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली आदि किसी भी शहर से ट्रेन के माध्यम से वाराणसी रेलवे स्टेशन पहुंच सकते हैं। वाराणसी रेलवे स्टेशन में आप टैक्सी या कैब लेकर आसानी से मंदिर पहुंच सकते हैं। अगर आप हवाई सफर से मां ब्रह्मचारिणी मंदिर पहुंचना चाहते हैं तो सबसे पास में लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां से आप टैक्सी या कैब लेकर मंदिर घूमने के लिए जा सकते हैं।

वाराणसी में ठहरने के लिए एक से एक बेहतरीन होटल या गेस्ट हाउस मिल जाएंगे। मोहित पेइंग गेस्ट हाउस, बुद्धा गेस्ट हाउस, यात्री निवास, ओम गेस्ट हाउस जैसे अनेक होटल और धर्मशाला हैं। जहाँ आप आसानी से रुक सकते हैं। संकलन - अजय त्यागी 



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