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ईरान-इजराइल युद्ध : दो धडों में बंटते देश! कहीं, तीसरे विश्वयुद्ध की आहट तो नहीं



अजय त्यागी 2024-04-15 12:21:44 समीक्षा

इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी - File Photo : Internet
इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी - File Photo : Internet

ईरान के इजराइल पर हमले के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे पश्चिमी देश इजराइल के समर्थन में आने की ख़बरें सामने आ रही हैं। दुनिया के कई नए देशों ने भी ईरान के हमले की निंदा की है। वहीं, एक मुस्लिम देश भी इजराइल की मदद कर रहा है। ये मुस्लिम देश इजरायल का पड़ोसी जॉर्डन है। जॉर्डन ने ईरानी ड्रोन और मिसाइलों को खत्म करने के लिए अपने फाइटर जेट मैदान में उतार दिए। हालाँकि, खबर यह भी सामने आ रही है कि व्हाइट हाउस के अधिकारियों के हवाले से अमेरिकी मीडिया ने कहा है कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शनिवार रात इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को फोन पर बताया कि अमेरिका ईरान के खिलाफ इजराइल की किसी भी जवाबी कार्रवाई में न तो भाग लेगा और न ही उसका समर्थन करेगा।

दूसरी और ईरान और इजराइल के बीच इस जंग में सबसे पहले रूस ईरान का साथ देने के लिए आगे आ सकता है। इसके अलावा इराक, सीरिया, लेबनान, तुर्की, कतर, जॉर्डन जैसे अरब मुस्लिम देश भी ईरान के पक्ष में खड़े रहेंगे।

इधर लेबनान भी फिलिस्तीन के समर्थन में इजराइल पर कई हमले कर चुका है। ऐसे में इजराइल को यदि तीन मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़ा तो निश्चित तौर पर इजराइल के समर्थन वाले देशों के युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा हुआ तो फिर एक बार दुनिया के देशों की दो धडों में बंटने की आशंका को भी नकारा नहीं जा सकता। 

दरअसल, ईरान ने ड्रोन हमलों के बाद इजरायल को सीधे तौर पर चुनौती दे डाली है। ईरान ने इसे अपने दूतावास पर हुए हमलों का जवाब बताया है। उधर इजरायल इतनी आसानी से सरेंडर नहीं करने वाला। इजरायल का इतिहास रहा है कि वह किसी भी हमले पर चुप नहीं रहता। इसका ताजा उदाहरण गाजा पट्टी में हमास के विरुद्ध इजराइल द्वारा की गई कार्यवाही से समझा जा सकता है। इजरायल साफ़ कहता है कि वह खुद पर हमला करने वाले को किसी भी सूरत में नहीं बख्शेगा। 

वहीं, भारत समेत अनेक राष्ट्र ऐसे भी हैं, जो किसी भी जंग के समर्थक नहीं है। ऐसे देश मध्यस्तता करते हुए बातचीत के दौर से आने वाले खतरे को टाल सकते हैं। लेकिन, यदि मिडिल ईस्ट में यह जंग अपनी भयावहता की और बढती है तो, निश्चित रूप से यह तृतीय विश्वयुद्ध का संकेत माना जा सकता है।   

अगर इतिहास पर गौर करें तो द्वितीय विश्वयुद्ध मुख्य रूप से दो धडों, मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र के मध्य हुआ था। यानि पूरी दुनिया के देश दो हिस्सों में बंट गए थे। इस युद्ध में लिप्त सारी महाशक्तियों ने अपनी आर्थिक, औद्योगिक तथा वैज्ञानिक क्षमता इस युद्ध में झोंक दी थी। इस युद्ध में विभिन्न राष्ट्रों के लगभग 10 करोड़ सैनिकों ने हिस्सा लिया था। यह मानव इतिहास का सबसे ज़्यादा घातक युद्ध साबित हुआ। 

इस महायुद्ध में 5 से 7 करोड़ व्यक्तियों की जानें गईं थीं। क्योंकि इसके महत्वपूर्ण घटनाक्रम में असैनिक नागरिकों का नरसंहार तथा परमाणु हथियारों का एकमात्र इस्तेमाल शामिल है (जिसकी वजह से युद्ध के अंत मे मित्र राष्ट्रों की जीत हुई)। इसी कारण यह मानव इतिहास का सबसे भयंकर युद्ध था। जिसकी भयावहता को आज तक कोई भी भुला नहीं सका है। 

द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से हम सबको सबक लेना चाहिए और मानवता का विनाश करने वाले किसी भी युद्ध को हर हाल में टालना चाहिए। जहाँ तक संभव हो बातचीत के जरिए इसका कोई हल तलाशना चाहिए -अजय त्यागी  



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