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सत्य और अहिंसा के प्रवर्तक, 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती आज



अजय त्यागी 2024-04-21 11:08:29 आध्यात्मिक

24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी - Photo : Internet
24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी - Photo : Internet

देशभर में आज जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जयंती मनाई जा रही है। हर साल उनकी जयंती चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। बेहद कम उम्र में उन्होंने मोहमाया त्याग कर सन्यासी का जीवन अपना लिया था। सब कुछ त्यागने से पहले उन्होंने 12 साल की कठोर तपस्या की। वो हर किसी के लिए प्रेरणा हैं। यही वजह है कि, जैन धर्म के लोग महावीर जयंती को काफी धूमधाम से मनाते हैं।

भगवान महावीर जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर थे। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार वर्ष पहले (ईसा से 540 वर्ष पूर्व), वैशाली गणराज्य के क्षत्रियकुंड (कुंडग्राम) वैशाली में अयोध्या इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ था। तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक भी शामिल थे। जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।

जैन ग्रन्थों के अनुसार समय-समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही बताई गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे और ऋषभदेव पहले। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए - अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) ,ब्रह्मचर्य। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धान्त दिए। महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। उन्होंने दुनिया को बताया कि दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही भगवान महावीर का जियो और जीने दो का सिद्धान्त है।

भगवान महावीर हमेशा से ही लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की राय देते थे। अगर कोई अपना जीवन सफल बनाना चाहता है, तो उसे महावीर स्वामी के संदेशों से प्रेरणा लेनी चाहिए। भगवान महावीर के अनमोल वचनों में लोगों को जीवन का सही मार्ग बताया गया है।

♦  अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।

♦  किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असल रूप को न पहचानना है और यह केवल आत्मज्ञान प्राप्त कर के ठीक की जा सकती है।

♦  खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।

♦  असली शत्रु व्यक्ति के भीतर है, वो शत्रु हैं क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरत।

♦  सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान अहिंसा है।

♦  मनुष्य स्वयं के दोष के कारण ही दुखी होते हैं, और वे अपनी गलती में सुधार करके प्रसन्न हो सकते हैं।



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