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आज मनाई जा रही है अक्षय तृतीया, जानें महत्व



अजय त्यागी 2024-05-10 10:46:20 आध्यात्मिक

अक्षय तृतीया पर गागर की पूजा का है विधान
अक्षय तृतीया पर गागर की पूजा का है विधान

सभी पाठकों को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं... 

आज देश के अलग-अलग हिस्सों में अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जा रहा है। अक्षय तृतीया, जिसे आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है, आमतौर पर इसे हिंदू और जैन धर्म में धूमधाम से मनाया जाता है। यह शुभ अवसर नई शुरुआत और समृद्धि का प्रतीक है। अक्षय शब्द का अर्थ स्वयं अविनाशी या अमर होता है। यह इस विश्वास को दर्शाता है कि इस दिन किए गए किसी भी कार्य को असीम सफलता और सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। 

अक्षय तृतीया का महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।  इस दिन को लेकर लोगों में कई मान्यताएं हैं। जिनमें से सबसे प्रमुख मान्यता ये है कि इस दिन बिना पंचांग देखे किसी भी प्रकार के मांगलिक और शुभ कार्य को किया जा सकता है। इस दिन धन योग के साथ रवि योग, शुक्रादित्य योग, मालव्य योग और भी कई शुभ योग बनते हैं। इसलिए इस राजयोग में मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होती है।

मौसम परिवर्तन और कृषि से भी गहरा रिश्ता 

धार्मिक मान्यताओं के साथ साथ अक्षय तृतीया का ऋतुओं से भी गहरा सम्बन्ध है। इस दिन को बसंत ऋतु का आखरी दिन माना जाता है। इसके बाद ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होती है। यही कारण है कि किसानों द्वारा खेती योग्य दिनों की संख्या गिनने और कृषि के लिए मौसम के पूर्वानुमान की शुरुवात इसी दिन से होती है। पहले किसान अक्षय तृतीया को ही बीज बोने की शुरुवात करते थे। इसके लिए पूर्व रात्रि से ही तैयारी कर ली जाती थी। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान कर अपने ईष्ट देव पितरों की पूजा अर्चना के साथ ही खेतों में बीज बोने की प्रक्रिया शुरू हो जाती थी। समय के अनुसार जब से ट्रेक्टर से खेती प्रारंभ हुई है, तब से ऐसा कम देखने को मिल रहा है। हालाँकि, अभी भी कई किसान अपनी पुरानी मान्यताओं के अनुसार खेती की शुरुवात अक्षय तृतीया से ही करते हैं। विशेषकर धान (अनाज) की खेती करने वाले किसान आज भी इसी दिन से अपनी शुरुवात करते हैं। 

ऐसे लगाते हैं मौसम का पूर्वानुमान 

किसान मिट्टी के ढ़ेले गीले होने के आधार पर किस महीने में कितनी बारिश होगी, इसका पता लगाते हैं। मान्यता यह भी है कि अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान वराह धरती माता को ऊपर ले कर आए थे। इसी शुभ दिन के मौके पर किसान आने वाले 4 महीनों में बारिश का अंदाजा लगाते हैं, ताकि पता चल सके कि उनकी फसल कैसी होगी। अक्षय तृतीया के दिन किसान मिट्टी की चार ढ़ेले (क्यूब) अपने खेतों से लाते हैं और सभी मिट्टी के ढेलों का महीनों के हिसाब से नामकरण करते हैं. जिसमें आषाढ़, सावन, भादो और क्वार का महीना होता है।

मिट्टी की ढ़ेलों के ऊपर नए घड़े में पानी भरकर पूजा करते हैं। आषाढ़ से ही बारिश का सीजन माना जाता है, स्थानीय लोगों का मानना है कि इन 4 महीनों के ढ़ेलों में जो ढ़ेला सबसे ज्यादा गीला होता है, उस हिसाब से इस महीने में कितनी बारिश होगी इसक सटीक अनुमान होता है। इसी के हिसाब से किसान फिर अपनी फसलों की तैयारी करते हैं। आज भी ग्रामीण इलाकों में मान्यता है कि अक्षय तृतीया तक नए घड़े का पानी नहीं पीना चाहिए। इसी दिन नए घड़े की पूजा कर उसका पानी पीना शुरू किया जाता है, इस वजह से गांव में मौसमी बीमारियों का डर भी नहीं रहता। अक्षय तृतीया के पूजन के बाद किसान अपने खेतों की बारिश के सीजन के लिए तैयारियां शुरु कर देते हैं।

गागर, पलाश और आम के पत्ते की होती है पूजा 

अक्षय तृतीया के दिन ही रंगोली से सजे घड़े, जिसे गागर कहा जाता है, उसमें पानी भरा जाता है। सनातन धर्म में मान्यता है कि आम के पत्तों से पूजा की जानी चाहिए। इसलिए आम के पत्ते, पलाश के पत्ते सहित आम का पन्ना और महिलाओं के द्वारा हाथों से बनाई गई आटे की सेवइयां से इस दिन भगवान को भोग लगाया जाता है और फिर किसान अपनी फसलों की तैयारी में जुट जाते हैं।

पौराणिक महत्त्व 

पौराणिक महत्व के नजरिए से अक्षय तृतीया बहुत ही खास तिथि मानी गई है। इस तिथि पर ही त्रेता और सतयुग का आरंभ हुआ था। इसलिए इसे युगादि तिथि के नाम से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था। भगवान परशुराम को आठ चिरंजीवियों में से एक माना गया है। धार्मिक मान्यता यह भी है कि अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने अक्षय पात्र दिया था, जिसमें कभी भी भोजन समाप्त नहीं होता था। अक्षय तृतीया के दिन महर्षि वेद व्यास ने भगवान गणेश के साथ महाभारत लिखना आरंभ किया था। अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं और चारों धाम की यात्रा शुरू होती है। इसके अलावा अक्षय तृतीया के दिन ही साल भर में मात्र इस दिन ही भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं।

इस दिन सोना क्यों खरीदते हैं लोग?

अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने की परंपरा बहुत पुरानी है। लोग इस दिन सुनार की दुकान पर सोने के सिक्के, आभूषण खरीदते हैं या फिर सोने में निवेश करते हैं। पर सवाल है सोना ही क्यों? असल में सोना सिर्फ एक धातु नहीं बल्कि धन-दौलत का प्रतीक माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है और धन का आगमन होता रहता है। चूंकि अक्षय तृतीया को बहुत ही शुभ दिन माना जाता है, इसलिए इस दिन किया गया कोई भी निवेश अच्छा फल देता है। सोना खरीदने के लिए ये बहुत ही उपयुक्त दिन माना जाता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की परंपरा चली आ रही है। यह भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा बन चुका है और त्यौहार को मनाने का एक शुभ तरीका माना जाता है। भले ही अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की परंपरा पुरानी है, लेकिन आजकल इसके मायने थोड़े बदल गए हैं। अब लोग इसे सिर्फ शुभ निवेश ही नहीं, बल्कि भविष्य के लिए आर्थिक सुरक्षा से जोड़कर देखते हैं।

अजय त्यागी



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