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अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस विशेष - इतिहास को वर्तमान से रूबरु करवाते हैं संग्रहालय



अजय त्यागी 2024-05-18 12:39:38 इतिहास

प्रतीकात्मक फोटो : Internet
प्रतीकात्मक फोटो : Internet

संग्रहालय जहाँ एक और इतिहास से रूबरू करवाते हैं वहीं, विकास की पूरी दास्तान बयान करते हैं। किसी भी संग्रहालय को देख कर सम्बंधित नगर की स्थापना से लेकर वर्तमान तक की उसकी पूरी विकास यात्रा का आनन्द लिया जा सकता है। वहां का खान-पान, वेश-भूषा, सभ्यता, संस्कृति आदि सभी के बारे में पूरी जानकारी केवल एक संग्रहालय को देख कर जुटाई जा सकती है।  

अन्तर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस प्रत्येक वर्ष 18 मई को मनाया जाता है। वर्ष 1983 में 18 मई को संयुक्त राष्ट्र ने संग्रहालय की विशेषता एवं महत्त्व को समझते हुए अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस मनाने का निर्णय लिया। इसका मूल उद्देश्य जनसामान्य में संग्रहालयों के प्रति जागरूकता तथा उनके कार्यकलापों के बारे में जन जागृति फैलाना था। इसका यह भी एक उद्देश्य था कि लोग संग्रहालयों में जाकर अपने इतिहास को, अपनी प्राचीन समृद्ध परंपराओ को जानें और समझें। 

अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद के अनुसार संगृहालय में ऐसी अनेक चीजें सुरक्षित रखी जाती हैं जो मानव सभ्यता की याद दिलाती है। संगृहालय में रखी वस्तु हमारी सांस्कृतिक धरोहर तथा प्रकृति को प्रदर्शित करती है। वर्ष 1992 में अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद ने यह निर्णय लिया कि वह प्रत्येक वर्ष एक नए विषय का चयन करेंगे। यह विषय संग्रहालयों की भूमिका पर केंद्रित होगा। जो लोगों के बीच शांतिपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के लिए समाज के लाभ के लिए काम करेगा।  

इस वर्ष के लिए अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस का विषय संग्रहालय, स्थिरता और कल्याण है। आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में 47वें अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस (आईएमडी) का जश्न मनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो का आयोजन किया जा रहा है। संग्रहालय एक्सपो को संग्रहालय पेशेवरों के साथ संग्रहालयों पर एक समग्र बातचीत शुरू करने के लिए डिजाइन किया गया है, ताकि वे भारत की सांस्कृतिक कूटनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में विकसित हो सकें।

इस सन्दर्भ में आज हम बताते हैं लाल किले में बने ऐतिहासिक संग्रहालय के बारे में। देश की राजधानी में बने इस संग्रहालय में बनती-बिगडती दिल्ली की दास्तान को देखा जा सकता है। उस दौर की विभीषिका को आसानी से महसूस किया जा सकता है। यह संग्रहालय 1857 की क्रांति से लेकर जलियांवाला बाग़ तक की दास्तान सुनाता है।

यही नहीं, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज के किस्से-कहानियां दीवारों पर लिपटी हुई हैं। सभी पर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के साथ आजादी के संघर्ष की गाथाओं की नक्काशी है। यहां दीवारों को देखने पर कुर्बानियों का अक्स झलकता है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो या बहादुर शाह जफर पर चला मुकदमा। आजाद हिंद फौज के सेनानियों पर मुकदमे की कहानी बयां करते दस्तावेज यहां प्रदर्शित हैं। 

संग्रहालय में प्रथम स्वाधीनता संग्राम 1857 से संबंधित दस्तावेज हैं। इसमें तत्कालीन दिल्ली का मानचित्र, अंग्रेजों से मोर्चा लेते समय की रणनीति संबंधी दस्तावेज, अश्मलेख, चिट्ठियां, चित्र, अभिलेख, पटौदी के नवाब और बहादुरशाह जफर द्वारा इस्तेमाल हथियार व उनके कपड़े यहां प्रदर्शित किए गए हैं। इन्हें देख कर उस दौर का मंजर खुद-ब-खुद आंखों के सामने तैरने लगता है। 

यही नहीं, यहां दिल्ली पर कब्जे के दौरान जनरल जे निकोलसन द्वारा इस्तेमाल फील्ड ग्लास व अन्य उपकरण शामिल हैं। साथ ही, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारतीयों के विद्रोह को दर्शाती लगभग एक शताब्दी पुरानी पेंटिंग प्रदर्शित की गई हैं। उधर, मेरठ से क्रांतिकारियों का दल पैदल चलकर दिल्ली आया और बहादुर शाह जफर से मुलाकात करने का दृश्य भी लोगों को अपनी ओर खींचता है।

याद-ए-जलियां संग्रहालय जलियांवाला बाग से जुड़ी यादों से रूबरू करा रहा है। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों पर अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुंध गोली चलाई थी। इसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई थी। साथ ही, इसमें पहले विश्व युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों के बारे में भी जानकारी दी गई है। इसको हूबहू जलियांवाला बाग की तरह बनाया गया है। लोग इसकी दीवारों को छूकर उस मंजर को याद करते हैं।     

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और इंडियन नेशनल आर्मी के बारे में संग्रहालय में काफी जानकारी मिलती है। कहा जाता है कि इसी इमारत में इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के सैनिकों पर अंग्रेजों ने मुकदमा चलाया था। इसमें कर्नल प्रेम कुमार सहगल, लेफ्टिनेंट कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों व मेजर जनरल शाह नवाज खां शामिल थे। यह मुकदमा पांच नवंबर, 1945 को शुरू हुआ और तीन जनवरी, 1946 तक चला। ऐसे में इन दीवारों में इतिहास गूंज रहा है। यह संग्रहालय नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज सहित उन प्रवासी भारतीयों को समर्पित है जिन्होंने आजाद हिंद फौज में शामिल होकर एक अविभाजित भारत के लिए बलिदान दिए। इसमें बोस के बचपन से लेकर और जब तक वो साइगौन में विमान पर चढ़े तब तक की जिंदगी और योगदान को दर्शाया गया है। - अजय त्यागी 



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