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चिंताजनक: लगातार पिंघल रहा दुनिया का सबसे बड़ा डूम्सडे ग्लेशियर, शोधकर्ताओं का दावा - प्रलयंकारी साबित होगा



अजय त्यागी 2024-05-22 10:53:50 भौगोलिक

दुनिया का सबसे बड़ा डूम्सडे ग्लेशियर - Photo : Wikipedia
दुनिया का सबसे बड़ा डूम्सडे ग्लेशियर - Photo : Wikipedia
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दुनिया का सबसे बड़ा डूम्सडे ग्लेशियर अंदर ही अंदर खोखला हो रहा है यानी तेजी से पिघल रहा है। इसके पूरी तरह पिघलने से समुद्र का जलस्तर करीब दो फुट तक बढ़ जाएगा, जो मानव के लिए प्रलयंकारी साबित होगा। 

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन नेशनल अकेडमी ऑफ साइंस की शोध पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक डूम्सडे ग्लेशियर जिसे थ्वाइट्स ग्लेशियर भी कहते हैं, के नीचे अंदर ही अंदर कई मील तक समुद्री जल भर चुका है। यह गर्म नमकीन समुद्री जल इस ग्लेशियर को पहले के अनुमानों से कहीं ज्यादा तेजी से पिघला रहा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, ग्लेशियर का एक्स-रे करने के लिए अंतरिक्ष से रडार डाटा का उपयोग किया गया, जिसमें सामने आया फ्लोरिडा के आकार वाला यह ग्लेशियर असल में 1940 से पिघलना शुरू हुआ और इसके बाद कभी पूरी तरह से मूल आकार में नहीं लौट पाया। 

जलवायु परिवर्तन का असर

शोध में सामने आया कि पिछले कुछ वर्षों में समुद्री बर्फ के लगातार कम होने के पीछे जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा कारण है। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट डाटा का विश्लेषण करते हुए पाया कि जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी के गर्म होने का असर समुद्रों के तापमान पर भी पड़ रहा है। समुद्रों के गर्म होते खारे पानी से ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने और टूटने का खतरा बढ़ता जा रहा है। 

तटीय इलाकों के लिए प्रलयंकारी 

डूम्सडे ग्लेशियर पूरी तरह पिघनले पर समुद्री जलस्तर 2 फीट तक बढ़ जाएगा। इसके अलावा यह पश्चिम अंटार्कटिका में आसपास की बर्फ की चादर के लिए एक प्राकृतिक बांध के रूप में भी काम करता है। इसके पिघलते ही बर्फ की पूरी चादर भी पिघलने लगेगी, जो दुनिया के तटीय इलाकों के लिए प्रलयंकारी साबित होगा, क्योंकि इससे समुद्र जलस्तर 10 फीट तक बढ़ सकता है। शोध से जुड़े कोलोराडो यूनिवर्सिटी के अध्येता डॉ. टेड स्कैम्बॉस कहते हैं कि हर दिन समुद्री लहरें ज्वार-भाटे की नियमित प्रक्रिया के तहत ग्लेशियर को ऊपर धकेल रही हैं, जिससे ग्राउंडिंग लाइन बढ़ती जा रही है। ग्लेशियर के पिघलने की गणनाओं में कभी इस कारण को शामिल ही नहीं किया गया था। इससे ग्लेशियर के पिघलने को लेकर ज्यादा सटीक अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।