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हाई कोर्ट ने बंगाल में 2010 के बाद जारी सभी OBC सर्टिफिकेट रद्द किए, भड़क गईं ममता



अजय त्यागी 2024-05-22 08:09:57 पश्चिम बंगाल

कोलकाता हाई कोर्ट और ममता बनर्जी - File Photo : Internet
कोलकाता हाई कोर्ट और ममता बनर्जी - File Photo : Internet

कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2010 के बाद जारी किए गए सभी ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द करने का आदेश दिया है। जज तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने ओबीसी प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया। वहीं सीएम ममता बनर्जी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि, वह इस आदेश का पालन नहीं करेंगी।

जज तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथर की पीठ ने कहा कि 2010 के बाद बनाए गए ओबीसी प्रमाणपत्र 1993 एक्ट के खिलाफ है। संयोग से, 2010 में एक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर, वाम मोर्चा सरकार ने ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) नामक एक पिछड़ा वर्ग बनाया। लेकिन 2011 में तृणमूल कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद, बिना अंतिम रिपोर्ट के, उसने ओबीसी की एक सूची बनाई जो पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 के विपरीत थी। परिणामस्वरूप वास्तविक पिछड़े वर्ग के लोग आरक्षण के लाभ से वंचित रह जाते हैं।

2010 के बाद जारी सभी ओबीसी सर्टिफिकेट को रद्द करने का आदेश

कोर्ट ने निर्देश दिया कि पिछड़े वर्गों की सूची 1993 के नए अधिनियम के अनुसार तैयार की जाएगी। यह सूची पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा तैयार की जाएगी। कोर्ट ने 2010 के बाद बनी ओबीसी सूची को अवैध करार दिया है। जो लोग 2010 से पहले ओबीसी सूची में थे वे बने रहेंगे। 2010 के बाद जिन लोगों के पास ओबीसी कोटे के तहत नौकरियां हैं या मिलने की प्रक्रिया में हैं, उन्हें कोटे से बाहर नहीं किया जा सकता। उनकी नौकरी पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

आदेश के मुताबिक, 2010 यानी तृणमूल कांग्रेस शासनकाल के बाद से जारी किए गए सभी ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द किए जाते हैं। हालांकि, अब तक इस सर्टिफिकेट के जरिए नौकरी पाने वालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। अब से 2010 के बाद जारी प्रमाणपत्र रोजगार के लिए स्वीकार्य नहीं होंगे। इस मामले में वादी पक्ष ने 2012 के कानून को रद्द करने के लिए याचिका दायर की है। उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट से 1993 के अधिनियम के अनुसार वास्तविक पिछड़े वर्ग के लोगों की पहचान करके एक नई ओबीसी सूची तैयार करने की भी अपील की है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, तृणमूल सरकार के इस काम के लिए अल्पसंख्यकों के बीच वास्तविक पिछड़े वर्गों को ओबीसी सूची में शामिल होने से वंचित कर दिया गया है।

क्या बोलीं, ममता

कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोषणा की कि वह इस आदेश का पालन नहीं करेंगी। ममता बोलीं कि आज मैंने सुना है कि एक न्यायाधीश ने एक आदेश पारित किया है, जो प्रसिद्ध रहा है। प्रधानमंत्री इस बारे में बात कर रहे हैं कि अल्पसंख्यक आदिवासी आरक्षण कैसे छीन लेंगे... यह कभी कैसे हो सकता है? इससे संवैधानिक विघटन हो जाएगा। अल्पसंख्यक कभी भी तपशीली या आदिवासी आरक्षण को नहीं छू सकते हैं। लेकिन ये शरारती लोग (भाजपा) अपना काम एजेंसियों के माध्यम से करते हैं।

ममता बोलीं, अब खेल शुरू होगा

ममता बनर्जी ने आगे कहा कि, वह कोर्ट के इस आदेश को स्वीकार नहीं करेंगी। सीएम ने कहा कि जब भाजपा के कारण 26 हजार लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं, तब भी मैंने इसे स्वीकार नहीं किया था। उसी तरह, मैं आज बता रही हूं... मैं आदेश को स्वीकार नहीं करती। उन्होंने कहा कि, वे भाजपा के आदेश को स्वीकार नहीं करेंगी और ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा। ममता बनर्जी ने यह भी स्पष्ट किया कि यह उनकी सरकार की तरफ से नहीं किया गया था....यह मैंने नहीं किया था। उपेन बिस्वास ने किया था। ओबीसी आरक्षण लागू करने से पहले सर्वेक्षण किए गए थे। उन्होंने कहा कि, पहले भी मामले दायर किए गए थे लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा कि मुझे आदेश मिल गया है...अब खेल शुरू होगा।



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