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भारतीय वैज्ञानिकों का कमाल - पॉलीमर को तेजी से नष्ट करने वाले फंगस को पहचाना, अब सिंगल यूज प्लास्टिक का होगा सफाया



अजय त्यागी 2024-05-28 12:43:47 विज्ञान

प्लास्टिक कचरा - File Photo : Internet
प्लास्टिक कचरा - File Photo : Internet
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प्रकृति, पर्यावरण और मानवता के लिए खतरा बन चुके प्लास्टिक को नष्ट करने में भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता हासिल की है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फंगस खोजा है, जो सिंगल यूज प्लास्टिक का तेजी से सफाया कर सकता है। चेन्नई के भारतीदासन और मद्रास विवि के शोधकर्ताओं ने क्लैडोस्पोरियम स्पैरोस्पर्मम नामक इस फंगस को सूक्ष्म जीवों से संक्रमित माइक्रोप्लास्टिक्स से अलग किया है। इस शोध से पता चला है कि यह फंगस आमतौर पर डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग बनाने में उपयोग होने वाले पॉलिमर को बड़ी तेजी से तोड़कर उसका वजन कम करने में मदद कर सकता है। शोध के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं। 

ऐसे नष्ट किया प्लास्टिक

वैज्ञानिकों ने बेहद कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एलडीपीई) के एक छोटे टुकड़े को फंगस कल्चर में डाला तो फंगस ने प्लास्टिक से चिपकने के बाद विशेष एंजाइम जारी किया। इन एंजाइमों ने प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में बदल दिया। इसकी वजह से प्लास्टिक के टुकड़े की संरचना ढह गई, उसमें दरारें, गड्ढे और छिद्र बन गए और सतह भी खुरदरी हो गई।

31 दिनों में 50 फीसदी तक नष्ट किया प्लास्टिक 

शोधकर्ताओं ने पाया कि फंगस कल्चर में डाले प्लास्टिक के टुकड़े का वजन एक सप्ताह में 15.2 फीसदी तक कम हो गया। वहीं 31 दिनों में इसमें 50 फीसदी तक की गिरावट आ गई। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह फंगस प्लास्टिक के टुकड़े को नष्ट करने में मदद करता है। दुनिया भर में बढ़ते प्लास्टिक कचरे में सिंगल यूज प्लास्टिक की बेहद अहम भूमिका रही है। इस बेहद कम घनत्व वाली पॉलीथीन (एलडीपीई) का उपयोग डिस्पोजेबल और किराना बैग के साथ-साथ खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में भी किया जाता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि खोजा गया यह नया फंगस प्लास्टिक की सफाई में पूरी दुनिया के लिए मददगार साबित होगा।

गंगा-यमुना से लेकर गर्भनाल तक में मिल चुके प्लास्टिक कण

विभिन्न शोधों से यह साबित हो चुका है कि आज प्लास्टिक के महीन कण हमारे भोजन, पानी यहां तक की हवा में भी घुल चुके हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों को गंगा-यमुना के जल में भी माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले थे। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों को इंसानी रक्त, फेफड़ों के साथ नसों में भी माइक्रोप्लास्टिक के अंश मिल चुके हैं। अजन्मे शिशुओं के गर्भनाल में भी माइक्रोप्लास्टिक होने के सबूत मिले हैं। यानी धरती, आकाश, समुद्र, ऊंचे पहाड़ और दूर ध्रुवों तक प्लास्टिक पहुंच चुका है। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक में 16,325 केमिकल्स के होने की भी पुष्टि की है। इनमें से 26 फीसदी केमिकल ऐसे हैं जो इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए चिंता का विषय हैं।