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इन्साफ मिला पर जवानी गंवा कर - उम्रकैद पाए तीन लोग 44 साल बाद बेगुनाह साबित, हाईकोर्ट ने रद्द की सजा



अजय त्यागी 2024-06-03 10:52:48 अजब - गजब

इलाहाबाद हाईकोर्ट - प्रतीकात्मक फोटो : Internet
इलाहाबाद हाईकोर्ट - प्रतीकात्मक फोटो : Internet

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 44 साल पहले मुजफ्फरनगर डीएवी कॉलेज में बीए के छात्र की हत्या के दोषी तीन दोस्तों को बेगुनाह करार दिया। कोर्ट ने उन्हें मिली आजीवन करावास की सजा रद्द कर दी है। 

यह फैसला न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा, न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने राजेश, ओमवीर और एक नाबलिग आरोपी की ओर से सजा के खिलाफ 40 साल पहले दाखिल अपील का निस्तारण करते हुए सुनाया। अपील करने वालों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बृजेश सहाय और सुनील वशिष्ठ ने दलील पेश की।

प्राप्त जानकारी के अनुसार सन 1980 का यह मामला मुजफ्फनगर थाना सिविल लाइंस के केशवपुरी मोहल्ले का है। अभियोजन की कहानी के मुताबिक छात्र अजय छह जनवरी को ताऊ रघुनाथ के कहने पर अपने साथी राजेश के पास डीजल के पैसे वापस लेने गया था। लेकिन, वह घर वापस नहीं लौटा। 

रघुनाथ ने आठ जनवरी को भतीजे की गुमशुदगी दर्ज कराई। खोजबीन के बाद राजेश की तलाश शुरू हुई। फिर उसे पुलिस ने मिनाक्षी सिनेमाघर के पास से गिरफ़्तार किया। इसके बाद राजेश की निशानदेही पर अजय का शव केशवपुरी मोहल्ले के सुखवीर के किराये के मकान से बरामद किया गया। 

इस कमरे में ओमवीर रहता था। इनकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने मामले में राजेश, ओमवीर और एक नाबालिग के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। अभियोजन की ओर से अदालत में 13 गवाह पेश किए गए। इसके बाद मुजफ्फनगर के अपर जिला व सत्र न्यायालय ने 30 जून 1982 को राजेश समेत तीन अभियुक्तों को हत्या और सुबूत मिटाने का दोषी करार देते हुए अजीवन कारावास की सजा सुनाई।

1982 में खटखटाया था हाईकोर्ट का दरवाजा  
सजा के खिलाफ तीनों ने 1982 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अपील के दौरान राजेश, ओमवीर की सुनवाई बतौर वयस्क आरोपी चली, जबकि तीसरे आरोपी को 2017 में वारदात के समय नाबालिग होना घोषित कर दिया गया। हाईकोर्ट ने चार दशक से लंबित अपील का निस्तारण करते हुए तीनों आरोपियों को मिली आजीवन करावास की सजा से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले में पेश अभियोजन के गवाहों की ओर से मृतक के अंतिम दृश्य के संबंध में दिए बयानों में विरोधाभास और शव की बरामदगी संदेहास्पद है।
 
मुकदमेबाजी में बीत गई जवानी
मामले में 44 साल पहले फंसे राजेश और ओमवीर की उम्र अब 60 के पार है। जबकि, सजा पाने के बाद नाबालिग घोषित आरोपी भी अब 59 के करीब है। करीब चार दशक चली मुकदमेबाजी के बाद बेगुनाह साबित हुए तीनों आरोपियों की जवानी इस मुकदमेबाजी में खाक हो गई।



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