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पत्रकारिता के पुरोधा और बीकानेर के कोहिनूर के. डी. हर्ष पञ्च-तत्व में विलीन



अजय त्यागी 2024-07-11 05:28:30 श्रृद्धांजलि

कोहिनूर समाचार पत्र के संपादक केशवदास हर्ष - Photo : Rex TV India
कोहिनूर समाचार पत्र के संपादक केशवदास हर्ष - Photo : Rex TV India

बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,

एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया!

वरिष्ठ पत्रकार एवं पाक्षिक कोहिनूर समाचार पत्र के संपादक केशवदास हर्ष यानि बीकानेर के कोहिनूर की पार्थिव देह गुरुवार प्रातः पंचतत्व में विलीन हो गई। हर्ष का 73 वर्ष की उम्र में बुधवार रात्रि निधन हो गया था। वे लम्बे समय से अस्वस्थ थे। उन्होंने मोहता चौक स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। हर्ष का अंतिम संस्कार गुरुवार प्रातः हर्षोलाव तालाब के पास स्थित हर्षों के श्मशान गृह में किया गया। उनके पुत्र मनोज हर्ष ने उनकी देह को मुखाग्नि दी। 

केशवदास हर्ष ने लगातार 59 वर्षों तक कोहिनूर समाचार पत्र का संपादन किया। उन्हें कोहिनूर के नाम से ही पहचाना जाता था। अंतिम संस्कार के दौरान जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक दिनेश चंद्र सक्सेना, आशाराम हर्ष तथा केशवदास हर्ष के परिजन मौजूद रहे। हर्ष के निधन पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के सहायक निदेशक हरिशंकर आचार्य ने शोक जताया है। उन्होंने कहा है कि हर्ष ने पत्रकारिता को जिया। उन्होंने सिद्धांतों की पत्रकारिता की और आमजन की समस्याओं को अपने समाचार पत्र के माध्यम से पुरजोर तरीके से उठाया। जनसंपर्क अधिकारी भाग्यश्री गोदारा ने कहा कि अस्वथता के बावजूद कोहिनूर ने समाचार पत्र का निर्बाध प्रकाशन किया। सहायक जनसंपर्क अधिकारी निकिता भाटी, राजेंद्र भार्गव, फिरोज खान, बृजेंद्र सिंह, प्रियांशु आचार्य और परमनाथ सिद्ध सहित जनसंपर्क कार्यालय के समस्त कार्मिकों ने हर्ष के निधन पर संवेदना व्यक्त की है।

 

मेरा सौभाग्य कि उनके सानिध्य में काम करने का अवसर मिला

बता दें कि, बीकानेर के सबसे पुराने अखबार कोहिनूर का लगातार 59 वर्षो तक सम्पादन करने के साथ-साथ बीकानेर के अनेक पत्रकारों को उन्होंने प्रशिक्षित भी किया। ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे भी उनके सानिध्य में ना सिर्फ काम करने का अवसर मिला बल्कि उनके मार्गदर्शन ने पत्रकारिता का वास्तविक अर्थ समझाया। मुझे याद है कि वह किसी भी लेख को कितना बारीकी से जांचते थे और उसमे छोटी से छोटी कमीं को भी दूर करने के लिए हमेशा समझाया करते थे। मुझे याद हैं उनके वो शब्द कि जनता की समस्या पत्रकार का दिल है तो कलम की सच्चाई पत्रकार की आत्मा। यदि दिल के साथ समझौता किया तो आत्मा मर जाएगी।

अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए वो बताते थे कि किस तरह उन्हें तांगे पर अखबार रखकर माइक से आवाज लगाकर अखबार बेचना पड़ता था। आपातकाल के समय को याद करते हुए वो बताते थे कि किस प्रकार सरकार द्वारा उन्हें प्रताड़ित किया जाता था। यहाँ तक कि उन्हें जेल में भी रहना पड़ा था। लेकिन, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी लेखनी की धार को कभी कुंद नहीं होने दिया। वो हमेशा कहा करते थे कि जनता की समस्याओं को उजागर करना, शासन और प्रशासन को उनकी खामियों से आगाह करना और जनता की भलाई एवं सुशासन के लिए मार्गदर्शी बनना ही एक पत्रकार का कर्तव्य है।

उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलते हुए पूर्ण सच्चाई और निष्पक्षता से पत्रकारिता करना ही उनके प्रति सच्ची श्रृद्धांजलि होगी।



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