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नहीं रहे जय संतोषी मां फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा



अजय त्यागी [Input - amarujala.com] 2024-07-19 04:05:48 श्रृद्धांजलि

जय संतोषी मां फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा
जय संतोषी मां फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा
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साल 1975 को वैसे तो हिंदी सिनेमा में अमिताभ बच्चन के साल के ही तौर पर याद किया जाता है क्योंकि उस साल उनकी दो फिल्में शोले और दीवार सबसे ज्यादा कमाई करने वाली टॉप 5 फिल्मों में शामिल रहीं। लेकिन, उसी साल रिलीज हुई फिल्म जय संतोषी मां ने फिल्म पंडितों के सारे समीकरण ही बदल दिए। साल 1975 में कमाई करने के मामले में ये फिल्म शोले के बाद दूसरे नंबर पर रही। इसे बनाने वाले निर्माता सतराम रोहरा के निधन की खबर आते ही लोगों में इस फिल्म की चर्चाएं फिर शुरू हो गई हैं। चलिए आपको बताते हैं इस फिल्म का पूरा बाइस्कोप।

बंबई तब दादर के आगे बांद्रा और जुहू तक भी बमुश्किल ही आ पाया था और, अंधेरी तक आने में तो लोग दस बार सोचते थे। लेकिन, एक दिन लोगों ने देखा तो पाया कि बैलगाड़ियों की लंबी कतारें वसई विरार की तरफ से और मध्य मुंबई में कल्याण औऱ ठाणे की तरफ से आती ही चली जा रही हैं। लोगों को पता चला कि कोई फिल्म लगी है शहर में, नाम है, जय संतोषी मां। इसी फिल्म ने पहले शो में कमाए थे सिर्फ 56 रुपये, दूसरे में सिर्फ 64 रुपये, इवनिंग शो की कमाई रही मात्र 98 रुपये और नाइट शो का कलेक्शन बमुश्किल सौ रुपये छू पाया था। लेकिन, रिलीज के पहले सोमवार की सुबह से जो हलचल शुरू हुई तो महीनों तक फिर जहां-जहां जय संतोषी मां लगी थी वहां के सफाई करने वाले तक मालदार हो गए, शो के बीच उछाली गई रेजगारियां बटोर बटोर कर।

ये उन दिनों की बात है जब जोधपुर में मंडोर के पास संतोषी मां का एक मंदिर हुआ करता था। लोगों को पता भी नहीं था कि ऐसी कोई देवी पुराणों में हैं भी। खुद इस फिल्म में संतोषी मां का किरदार करने वाली अभिनेत्री अनीता गुहा को नहीं पता था कि ऐसी कोई देवी हैं। साल 2006 में स्टार गोल्ड पर फिल्म जय संतोषी मां पहली बार दिखाई जाने वाली थी और फिल्म के प्रसारण से पहले चैनल वालों ने अनीता गुहा को खोज निकाला औऱ उनके खूब इंटरव्यू भी कराए। बांद्रा के उनके फ्लैट के सामने हालांकि किसी जमाने में लोगों का हुजूम उमड़ता था, उनके दर्शन करने के लिए। उन्होंने तब बताया भी था कि कैसे लोग अपने बच्चे उनकी गोद में आशीर्वाद पाने के लिए डाल दिया करते थे।

फिल्म की कहानी सत्यवती नाम की एक महिला की है जिसको उसके ससुराल वाले बहुत कष्ट देते हैं और फिर संतोषी मां की कृपा से उसके जीवन में सब ठीक हो जाता है। सत्यवती के पति बिरजू का रोल करने वाले यानी कि फिल्म के हीरो आशीष कुमार की मानें तो उन्होंने ही इस फिल्म का आइडिया फिल्म के प्रोड्यूसर सतराम रोहरा को दिया था। आशीष के बच्चे नहीं थे और तभी उनकी पत्नी ने संतोषी मां के सोलह शुक्रवार व्रत रखने शुरू किए। व्रत के बीच में ही आशीष की पत्नी गर्भवती हो गईं तो बाकी के व्रतों की कथाएं आशीष ने अपनी पत्नी को सुनाई।

अपने घर में बिटिया के जन्म के बाद आशीष ने ये बात सतराम के गुरु और फाइनेंसर सरस्वती गंगाराम को सुनाई जिन्होंने फिल्म शुरू करने के लिए 50 हजार रुपये दिए थे। बाद में फिल्म से उस समय के चर्चित फिल्म वितरक केदारनाथ अग्रवाल जुड़े और उन्होंने तब तक शूट हो चुकी फिल्म के अधिकार 11 लाख रुपये एडवांस देकर खरीद लिए। फिल्म कुल 12 लाख में बनी और इसने बॉक्स ऑफिस पर अब तक कमाए हैं करीब 25 करोड़ रुपये। ये अलग बात है कि फिल्म के हिंदी सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर बनने के बाद भी न इसके वितरक के हाथ कुछ लगा और न ही इसके निर्माता के। यहां तक कि फिल्म के निर्माता सतराम रोहरा ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था।

फिल्म में संतोषी मां का रोल करने वाली अनीता गुहा रातोंरात स्टार बन गईं। इससे पहले वह सीता मैया के रोल तीन फिल्मों में कर चुकी थीं। वह फिल्म आराधना में राजेश खन्ना की मां भी बन चुकी थीं और फिर उनके जीवन में संतोषी मां का आशीर्वाद आ गया। इस पूरी फिल्म में जब तक उन्होंने शूटिंग की, हमेशा व्रत रखकर ही काम किया। इस बारे में तब अनीता ने बताया था कि पहले दिन की शूटिंग बहुत अफरातफरी में हुई। हम सब लोग सुबह से मेकअप कराकर रेडी थे लेकिन पहला शॉट काफी देर से हुआ। इस चक्कर में पहले ब्रेकफास्ट और फिर लंच मिस हो गया। शाम को इसका एहसास हुआ औऱ निर्देशक विजय शर्मा ने कुछ खाने को कहा तो मुझे लगा कि खाने लगी तो चेहरे का मेकअप फिर से कराना होगा तो मैंने कहा कि अब काम खत्म करके ही खाती हूं। तो पूरा दिन उस दिन बिना कुछ खाए पीये ही निकल गया। फिर मैंने सोचा कि हो सकता हो कि इसमें भी ईश्वर की कुछ इच्छा रही हो तो इसके बाद मैंने जितने दिन शूटिंग की, बिना कुछ खाए पीये ही शूटिंग की।

लेकिन, जैसा कि हर कालजयी किरदार करने वाले के साथ होता है वैसा ही अनीता गुहा के साथ भी हुआ, इस फिल्म के बाद उन्हें भी दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल की तरह धार्मिक रोल ही ऑफर होने लगे। जबकि वह जय संतोषी मां फिल्म से पहले राजेंद्र कुमार की फिल्म गूंज उठी शहनाई में फिल्मफेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर फीमेल का नॉमीनेशन जीत चुकी थीं। फिल्म जय संतोषी मां चली तो बस ईश्वर के ही चमत्कार से। फिल्म की कहानी अच्छी लिखी गई थी। गांव गरीब के संतोष की कहानी थी। उस समय के सामाजिक हालात से जूझ रहे आम आदमी को संतोष देने की कहानी थी। गरीब इसी बात में खुश हो जाता कि कोई ऐसी भी देवी हैं जो सिर्फ गुड़ चने का प्रसाद पाकर ही खुश हो जाती हैं।

फिल्म जय संतोषी मां शुरू होती है रक्षा बंधन के त्योहार से जहां भगवान गणेश के दोनों बेटे एक बहन की जिद करते हैं। भगवान गणेश और उनकी पत्नियों ऋद्धि व सिद्धि की इस संतान का नाम नारद रखते हैं, संतोषी। फिल्म इसके बाद देवलोक से सीधे मृत्युलोक आती है जहां सत्यवती मंदिर में मां संतोषी की आरती करते दिखती हैं। फिल्म की कहानी दोनों लोकों में समानांतर चलती रहती है। फिल्म को सबसे ज्यादा मदद मिली अपने संगीत से। कवि प्रदीप के लिखे गीतों को संगीतकार सी अर्जुन ने बहुत ही मौलिक और लोकगीतों के अनुरूप धुनें दीं। खुद कवि प्रदीप ने फिल्म में दो गाने गाए। मन्ना डे और महेंद्र कपूर की आवाजें फिल्म के किरदारों पर बिल्कुल फिट बैठीं और सोने पर सुहागा बनी उषा मंगेशकर की आवाज। फिल्म की हीरोइन कानन कौशल के लिए गाए उनके सारे गीत सुपरहिट रहे।

फिल्म जय संतोषी मां के सामाजिक-आर्थिक असर पर बाकायदा लोगों ने शोध पत्र लिखे हैं। इस फिल्म ने देवी संतोषी का इतना प्रचार भारत और विदेश में किया कि उनकी तस्वीरों और व्रत कथाओं का एक अलग से कारोबार विकसित हो गया। पूरे देश में जहां तहां संतोषी माता के मंदिर बने। लोग श्रद्धा पूर्वक उनकी पूजा करने लगे और इसी फिल्म ने पहली बार देश में लोगों को धर्म का कारोबार करने का चस्का भी लगाया। देश में भगवान का रास्ता बताने के नाम पर मंडली जमाने वाले तमाम बाबा खुद ही भगवान कहलाकर अपनी पूजा कराने लगे। फिल्म का ये दुरुपयोग शायद देवी संतोषी मां ने भी नहीं सोचा था। तभी तो फिल्म से जुड़े सभी लोगों के साथ कुछ न कुछ अनिष्ट होता चला गया।

फिल्म जय संतोषी मां में संतोषी माता बनीं अनीता गुहा को सफेद दाग की बीमारी हुई और इसके चलते उनका अपने घर से बाहर आना बाद के दिनों में काफी कम हो गया। पति माणिक दत्त का असामयिक निधन होने के बाद वह बहुत ही गुमनाम सी जिंदगी जीते हुए 2007 में दुनिया छोड़ गईं। कानन कौशल को भी फिल्म के बाद ज्यादा कोई खास मदद नहीं मिली। उन्होंने अपने करियर में 60 हिंदी और 16 गुजराती फिल्में की लेकिन उनकी कोई पहचान नहीं बन सकी। फिल्म निर्माता सतराम रोहरा दिवालिया होने के बाद बहुत मुसीबत में रहे और अब इस दुनिया को अलविदा कह गए।

फिल्म के वितरक केदारनाथ अग्रवाल के पास भी फिल्म की कमाई की रकम नहीं पहुंची। उनके भाइयों पर आरोप लगा कि वे सारी रकम बीच में ही ले उड़े। बताते हैं कि उनको बाद में फालिज मार गया। फिल्म के हीरो आशीष कुमार और फिल्म वितरक केदारनाथ अग्रवाल के भागीदार संदीप सेठी के बीच फिल्म की कमाई को लेकर लंबा विवाद चला। आशीष ने फिल्म की कहानी पर नाटक बनाया कथा संतोषी मां की,  ये नहीं चला। फिर फिल्म बनाई, सोलह शुक्रवार, ये भी फ्लॉप रही। जय संतोषी मां की कहानी पर इसी नाम से ही साल 2006 में भी एक फिल्म आई जिसमें हीरोइन थीं नुसरत भरुचा। ये फिल्म भी फ्लॉप रही।