Fri, 20 September 2024 03:34:21am
गुरुवार को बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार के रूप में शपथ ली। लेकिन जैसे ही यूनुस ने कमान संभाली, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और छात्र नेताओं के बीच मतभेद उभरने लगे। चुनाव को लेकर दोनों पक्षों में भारी असहमति है, जो देश में नई राजनीतिक अस्थिरता का संकेत दे रही है।
अंतरिम सरकार के गठन के साथ ही शुरू हुआ विवाद
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का नया अध्याय उस समय शुरू हुआ, जब राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुखिया नियुक्त किया। यूनुस ने देशवासियों से शांति और संयम की अपील की, लेकिन उनके इस आह्वान का उल्टा असर होता दिखा। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान और छात्र नेतृत्व के बीच मतभेद की खबरें सामने आने लगीं।
बीएनपी और छात्र नेताओं में चुनाव को लेकर मतभेद
बीएनपी और छात्र नेताओं के बीच असहमति का मुख्य कारण चुनाव की तिथि को लेकर है। रहमान जहां जल्द चुनाव कराने के पक्षधर हैं, वहीं छात्र नेताओं का कहना है कि उन्हें अपनी पार्टी तैयार करने के लिए समय चाहिए। चुनाव जल्दी होने पर उन्हें इस प्रक्रिया से वंचित रहना पड़ेगा।
रहमान का चुनावी संदेश और छात्र नेताओं की प्रतिक्रिया
ढाका छोड़कर शेख हसीना के भारत दौरे के बाद, तारिक रहमान ने एक विडियो संदेश जारी कर तत्काल चुनाव कराने की मांग की थी। उन्होंने दावा किया कि देश को कमजोर करने की साजिशें रची जा रही हैं, इसलिए जल्द चुनाव होना जरूरी है। लेकिन इस मांग के विपरीत, छात्र नेताओं ने चुनाव की तिथि को लेकर अपनी आपत्तियां जताई हैं। वे मानते हैं कि चुनाव की तैयारी के लिए उन्हें और समय की जरूरत है।
शेख हसीना और उनके बेटे की प्रतिक्रिया
शेख हसीना के बेटे, सजीब वाजेद, जो खुद राजनीति में सक्रिय हैं, उन्होंने भी जल्द चुनाव कराने की मांग की थी। सजीब वाजेद का मानना है कि चुनाव जल्द से जल्द होना चाहिए ताकि स्थिरता बनी रहे। दूसरी ओर, तारिक रहमान का विवादों से भरा इतिहास, जिसमें 2004 में शेख हसीना की हत्या की साजिश के मामले में दोषी ठहराया जाना शामिल है, इस चुनावी माहौल को और भी पेचीदा बना रहा है।
बांग्लादेश की राजनीति में यह विवाद भविष्य में एक नए संघर्ष का संकेत हो सकता है। अंतरिम सरकार के गठन के बाद ही बीएनपी और छात्र नेताओं के बीच उभरे मतभेद ने देश में चुनावी माहौल को गरमा दिया है। अब देखना होगा कि इस विवाद का अंत कैसे होता है और क्या देश में जल्द चुनाव कराने की राह आसान हो पाएगी।
अतीत की घटनाएं और इस मुद्दे का संदर्भ
बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का इतिहास काफी पुराना है। इससे पहले भी कई बार वहां की राजनीति में बड़े विवाद हुए हैं, जिनमें सेना के हस्तक्षेप और अस्थायी सरकारों का गठन शामिल है। 2007 में भी बांग्लादेश में एक अस्थायी सरकार बनी थी, जिसने लंबे समय तक शासन किया था। उस समय भी बीएनपी और अवामी लीग के बीच मतभेद उभरकर सामने आए थे, और देश में हिंसक झड़पें भी हुई थीं।