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शंभू बॉर्डर पर सात महीने से जमे किसानों की आवाज़ें, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से हलचल की उम्मीद



अजय त्यागी 2024-08-21 02:10:40 दिल्ली

शम्भू बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन - File Photo : Internet
शम्भू बॉर्डर पर किसानों का प्रदर्शन - File Photo : Internet

पंजाब-हरियाणा की सीमा पर स्थित शंभू बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। महीनों से चले आ रहे इस विवाद ने अब न्यायपालिका का ध्यान आकर्षित किया है, और आज सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई होने वाली है। क्या यह सुनवाई किसानों के आंदोलन को नए मोड़ पर ले जाएगी? क्या सरकार और किसानों के बीच की खाई पट जाएगी? या फिर यह मुद्दा और उलझेगा? यह जानने के लिए हमें मामले की पूरी जड़ तक जाना होगा।

शंभू बॉर्डर का बंद होना: एक अहम मोड़
शंभू बॉर्डर, जो पंजाब के पटियाला जिले और हरियाणा के अंबाला जिले के बीच स्थित है, पिछले सात महीनों से किसानों के आंदोलन का केंद्र बना हुआ है। यह बॉर्डर 13 फरवरी से बंद है, जब किसानों ने अपनी मांगों को लेकर दिल्ली की ओर कूच किया था। दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर दूर स्थित इस बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने बैरिकेड्स लगा दिए थे। इस कदम के चलते हजारों किसान इस बॉर्डर पर ही डटे रहे, जिससे यहां का यातायात बाधित हो गया।

किसानों की मांगें: संघर्ष की जड़
किसानों का यह विरोध प्रदर्शन मुख्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग को लेकर है। एमएसपी वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर सरकार किसानों से उनकी कृषि उपज खरीदने का वादा करती है। देश में 22 फसलों के लिए एमएसपी निर्धारित की गई है, जिनमें मुख्य रूप से अनाज, दालें, तिलहन और धान शामिल हैं। इसके अलावा, किसानों की अन्य प्रमुख मांगों में किसानों-मजदूरों का कर्जा माफ करना, भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को लागू करना, और लखीमपुर हिंसा के आरोपियों को सजा दिलवाना शामिल हैं।

सरकार और किसानों के बीच बढ़ती खाई
पिछले कुछ महीनों में, किसानों और सरकार के बीच की खाई और गहरी हो गई है। किसानों की मांगों को लेकर सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे किसानों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है। सरकार के साथ हुई कई बैठकों के बावजूद, किसी भी पक्ष ने अभी तक अपने रुख में कोई लचीलापन नहीं दिखाया है। इस गतिरोध ने इस मुद्दे को और जटिल बना दिया है, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा है।

सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: एक उम्मीद की किरण
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में अंबाला और पटियाला के एसएसपी को बैठक कर यह तय करने को कहा था कि कुछ रास्तों को जरूरतमंद लोगों के लिए खोला जा सके। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया था कि किसानों और सरकार के बीच वार्ता के लिए एक वार्ताकार नियुक्त किया जा सकता है। आज की सुनवाई में कोर्ट इसी मुद्दे पर फैसला सुना सकता है, जिससे इस गतिरोध का समाधान निकलने की उम्मीद जागी है।

वार्ताकारों के नाम पर चर्चा
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट किसानों और सरकार के बीच बातचीत के लिए वार्ताकारों के नाम तय कर सकता है। इससे पहले भी किसान आंदोलन के दौरान कई बार वार्ताकारों की नियुक्ति की गई है, लेकिन हर बार नतीजे असफल रहे हैं। अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट की इस पहल से क्या वाकई इस मसले का समाधान निकल पाएगा या फिर यह मामला और उलझ जाएगा।

लंबे समय से जमे हुए किसान: उनकी स्थिति और भावनाएं
सात महीनों से शंभू बॉर्डर पर डटे किसानों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। इतने लंबे समय से चल रहे इस आंदोलन ने किसानों को शारीरिक और मानसिक रूप से थका दिया है, लेकिन उनकी मांगों को लेकर उनका संकल्प अभी भी अडिग है। कई किसानों ने अपनी खेतीबाड़ी छोड़कर इस आंदोलन में हिस्सा लिया है, क्योंकि वे इसे अपने जीवन और भविष्य की लड़ाई मानते हैं।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: क्या बदल सकता है भविष्य?
आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस आंदोलन के भविष्य को तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है। अगर कोर्ट किसानों की मांगों के प्रति सकारात्मक रुख अपनाता है, तो इससे किसानों को बड़ी राहत मिल सकती है। लेकिन अगर कोर्ट का फैसला किसानों की उम्मीदों के खिलाफ जाता है, तो इससे आंदोलन और भी तीव्र हो सकता है।

निष्कर्ष: एक लंबी लड़ाई का अंत?
शंभू बॉर्डर पर किसानों का विरोध प्रदर्शन एक लंबी और कठिन लड़ाई का प्रतीक है। यह आंदोलन न केवल किसानों के अधिकारों की लड़ाई है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र में नागरिकों की आवाज की ताकत को भी दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट की आज की सुनवाई से यह तय होगा कि क्या यह आंदोलन अपने अंजाम तक पहुंचेगा, या फिर यह लड़ाई और लंबी खिंचेगी। इस मामले में हर निर्णय का दूरगामी प्रभाव हो सकता है, जो न केवल किसानों बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण होगा।



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