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एरण: गुप्तकालीन इतिहास और कृष्ण लीला के दुर्लभ शिलालेख



अजय त्यागी 2024-08-24 10:04:00 आध्यात्मिक

कृष्ण लीला के दुर्लभ शिलालेख - Photo : Rex TV India
कृष्ण लीला के दुर्लभ शिलालेख - Photo : Rex TV India
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कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे जन्माष्टमी व गोकुलाष्टमी के रूप में भी जाना जाता है, एक वार्षिक हिंदू त्योहार है जो विष्णुजी के दशावतारों में से आठवें और चौबीस अवतारों में से बाईसवें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म के आनन्दोत्सव के लिये मनाया जाता है। यह मणिपुर, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा भारत के अन्य सभी राज्यों में पाए जाने वाले प्रमुख वैष्णव और निर्सांप्रदायिक समुदायों के साथ विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में मनाया जाता है।  इस वर्ष जन्माष्टमी 26 अगस्त को मनाई जाएगी। इस अवसर पर आइए आपको बताते हैं एक ऐसी जगह के बारे में जहाँ कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक पूरी कृष्ण लीला के शिलालेख प्रमाणिक रूप में मौजूद हैं।  

प्राचीन धरोहरों का छिपा खजाना
मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित एरण, एक ऐसा पुरातात्विक स्थल है, जो न केवल भारत के प्राचीन इतिहास का प्रतीक है, बल्कि गुप्तकालीन संस्कृति, कला, और धार्मिक परंपराओं का अनमोल खजाना भी है। गुप्तकाल के इस महत्वपूर्ण स्थल में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की मूर्तियों के अलावा, कृष्ण लीला के शिलालेखों के दुर्लभ प्रमाण भी मिलते हैं, जो इसे और भी विशेष बनाते हैं।

गुप्तकालीन वैष्णव परंपरा की झलक
एरण में भगवान विष्णु के 10 अवतारों की मूर्तियों के साथ-साथ, यहां की सबसे खास बात यह है कि यह स्थल गुप्तकाल में वैष्णव परंपरा का एक प्रमुख केंद्र था। भगवान विष्णु के वराह अवतार की विशालकाय मूर्ति, जो अपने समय की सबसे अनूठी और प्रभावशाली प्रतिमा मानी जाती है, इस बात का प्रमाण है कि इस स्थल का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व कितना व्यापक था। यहां पर वराह अवतार के अलावा महाभारत, बलराम और विक्रमादित्य के संदर्भ में भी शिलालेख मिलते हैं, जो इस स्थल को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।

कृष्ण लीला के अद्वितीय शिलालेख
एरण की सबसे महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक हैं कृष्ण लीला से जुड़े 26 शिलालेख, जिनमें कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक की घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है। यह शिलालेख लाल बलुआ पत्थर पर उकेरे गए हैं और इनका निर्माण गुप्तकाल में हुआ था। एरण का यह स्थल इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि यहां के शिलालेखों में कृष्ण लीला का इतना विस्तृत और सजीव चित्रण अन्य किसी भी भारतीय पुरातात्विक स्थल पर नहीं मिलता।

रामगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन
एरण का ऐतिहासिक महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह गुप्तकाल में क्षेत्रीय राजधानी थी और कहा जाता है कि यहां रामगुप्त और चंद्रगुप्त द्वितीय का शासन था। यहां से प्राप्त सिक्के और अभिलेख इस बात का प्रमाण देते हैं कि इस स्थल पर गुप्तकालीन शासकों का महत्वपूर्ण प्रभाव था।

सती प्रथा का प्राचीन प्रमाण
एरण में गुप्तकालीन अभिलेखों के साथ-साथ, यहां का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू सती प्रथा का सबसे पुराना प्रमाण है। 510 ईस्वी के एक शिलालेख में भानुगुप्त नामक राजा के समय की एक घटना का उल्लेख है, जिसमें गोपराज नामक योद्धा की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी ने सती प्रथा का पालन किया। यह भारत में सती प्रथा का सबसे पुराना ज्ञात उदाहरण है, जो एरण के ऐतिहासिक महत्व को और भी बढ़ा देता है।

एरण: एक अद्वितीय धरोहर
एरण न केवल गुप्तकालीन इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह स्थल आज भी पुरातत्वविदों और इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण शोध का केंद्र बना हुआ है। यहां के शिलालेख, मूर्तियां और अन्य पुरातात्विक प्रमाण इस बात की गवाही देते हैं कि एरण भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और अद्वितीय स्थल है, जो हजारों साल पुरानी परंपराओं और धरोहरों का जीवंत प्रमाण है।

पुरातात्विक महत्त्व 
एरण का पुरातात्विक स्थल न केवल भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण अध्याय है, बल्कि यह स्थल आज भी भारतीय संस्कृति, कला और धार्मिक परंपराओं के संरक्षण का प्रतीक बना हुआ है। यहां की गुप्तकालीन धरोहरें और कृष्ण लीला के शिलालेख इस स्थल को विशेष बनाते हैं, जो हर भारतीय को गर्व का अनुभव कराता है। इस धरोहर का संरक्षण और प्रचार-प्रसार हमारी जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस महान धरोहर से प्रेरणा ले सकें।