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राऊज एवेन्यू कोर्ट का बड़ा फैसला: 1984 के सिख दंगों में जगदीश टाइटलर पर हत्या के आरोप तय



अजय त्यागी 2024-08-30 05:17:54 दिल्ली

जगदीश टाइटलर पर हत्या के आरोप तय - Photo : Rex TV India
जगदीश टाइटलर पर हत्या के आरोप तय - Photo : Rex TV India

1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में लंबे समय से न्याय की आस लगाए पीड़ितों को आखिरकार राहत मिली है। दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ हत्या सहित कई गंभीर आरोप तय करने का आदेश दिया है। यह वही मामला है जिसमें पूर्व में कांग्रेस सरकार द्वारा टाइटलर को क्लीन चिट दी गई थी, जिसे अब चुनौती दी गई है।

जगदीश टाइटलर पर हत्या के आरोप तय
राऊज एवेन्यू कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ हत्या और अन्य गंभीर आरोपों को तय करने का आदेश दिया है। यह फैसला विशेष सीबीआई न्यायाधीश राकेश सियाल द्वारा सुनाया गया, जिन्होंने टाइटलर के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य पाए।

गुरुद्वारा पुल बंगश पर हमले का मामला
यह मामला विशेष रूप से 1 नवंबर 1984 को उत्तरी दिल्ली के पुल बंगश इलाके में तीन लोगों की हत्या से जुड़ा है। गवाहों के अनुसार, टाइटलर ने एक भीड़ को उकसाते हुए कहा था कि सिखों को मारो, उन्होंने हमारी मां को मारा है, जिसके बाद तीन लोगों की हत्या कर दी गई थी।

पहले मिली थी क्लीन चिट, अब नए सिरे से जांच
गौरतलब है कि इस मामले में पहले जगदीश टाइटलर को कांग्रेस सरकार ने क्लीन चिट दी थी। हालांकि, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधन समिति और भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा की लगातार कानूनी लड़ाई और प्रधानमंत्री व गृह मंत्री के समर्थन से इस मामले की दोबारा जांच की गई और अब टाइटलर के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं।

अगली सुनवाई 13 सितंबर को
कोर्ट ने टाइटलर के खिलाफ अन्य आरोपों में अवैध सभा, दंगा फैलाने, विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, घर में घुसपैठ और चोरी शामिल हैं। मामले की अगली सुनवाई 13 सितंबर 2024 को होगी, जिसमें आरोपों को औपचारिक रूप से तय किया जाएगा।

न्याय की ओर एक और कदम
यह फैसला 1984 के दंगों के पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने इस फैसले का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का धन्यवाद किया और इसे न्याय की जीत बताया।

इस रिपोर्ट के निष्कर्षों से यह साफ हो गया है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में न्याय की उम्मीदें एक बार फिर जगी हैं और पीड़ितों को न्याय मिलने की संभावना प्रबल हो गई है।



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