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कलकत्ता हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: डॉक्टर की निर्मम हत्या पर प्रदर्शन की अनुमति



अजय त्यागी 2024-08-30 10:03:56 पश्चिम बंगाल

कलकत्ता हाई कोर्ट - Photo : Internet
कलकत्ता हाई कोर्ट - Photo : Internet

कोलकाता में राज्य-प्रायोजित आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर की निर्मम हत्या और बलात्कार की घटना ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। इस दर्दनाक घटना के खिलाफ आवाज उठाने के लिए समाज सेवी संस्था कल्चरल एंड लिटरेरी बंगाल ने 3 सितंबर को एक प्रदर्शन मार्च निकालने की योजना बनाई थी, जिसे पहले पुलिस द्वारा अनुमति नहीं दी गई थी। लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद, उन्हें न्याय मिला और प्रदर्शन की अनुमति दी गई है।

पुलिस की अनुमति को लेकर हुआ विवाद
कल्चरल एंड लिटरेरी बंगाल ने जब पुलिस से 3 सितंबर को रवींद्र सदन से हाजरा क्रॉसिंग तक एक प्रदर्शन मार्च निकालने की अनुमति मांगी, तो उन्हें पुलिस द्वारा कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद, उन्होंने कलकत्ता हाई कोर्ट के एकल-पीठ जज अमृता सिन्हा के समक्ष याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि एक समाज सेवी संस्था द्वारा किए जाने वाले शांतिपूर्ण प्रदर्शन को रोकना गलत है, खासकर जब सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि ऐसे मामलों में शांतिपूर्ण विरोध को दबाया नहीं जा सकता।

राज्य सरकार का पक्ष और तर्क
राज्य सरकार के वकील ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि चूंकि प्रस्तावित प्रदर्शन का समय कार्यालय के समय के अंत से मेल खाता है, इसलिए पुलिस ने मार्च के लिए अनुमति नहीं दी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि प्रदर्शन के समय में बदलाव किया जाए तो पुलिस द्वारा अनुमति दी जा सकती है।

अदालत की टिप्पणी और अनुमति
न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद राज्य सरकार के वकील से पूछा कि क्या आर.जी. कर मामले पर होने वाले सभी प्रदर्शनों को उनके समय के कारण प्रतिबंधित किया जा सकता है? उन्होंने प्रदर्शन की अनुमति देते हुए कहा कि यह राज्य पुलिस की जिम्मेदारी होगी कि वे यह सुनिश्चित करें कि कार्यक्रम शांति और बिना किसी बाधा के संपन्न हो। साथ ही, उन्होंने संगठन को सलाह दी कि वे कार्यक्रम के समय को लेकर पुलिस अधिकारियों से चर्चा करें।

न्याय की जीत या सरकार का दबाव?
इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला उन सभी लोगों के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है जो न्याय और सच्चाई के पक्ष में खड़े हैं। संगठन का यह कदम न केवल न्याय के लिए एक लड़ाई है, बल्कि यह सरकार की नीतियों और पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़ा करता है। इस फैसले को राज्य में न्याय और सच्चाई की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है।



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